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ई-लर्निंग: हर हाथ में होगी शिक्षा की मशाल


 ई-लर्निंग का सपना हम सालों से संजोए हुए हैं लेकिन अब लगता है सच होगा। सरकार और निजी संस्थाओं ने ई-लर्निंग की दिशा में कुछ ऐसी ही पहल की है। भारत में ईलर्निंग की क्या है स्थिति और कैसा है इसका भविष्य बता रहे हैं मुकेश कुमार सिंह

मित उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव का रहने वाला है। आज वह बड़ा ही असमंजस में था। एक ओर जहां खुशी थी वहीं दूसरी ओर एक गम भी सता रहा था। गांव में रहकर उसने कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी तो कर ली थी लेकिन उसे आगे भी पढ़ना था। 

इसी सिलसिले में वह कोचिंग के लिए शहर जा रहा था ताकि इंजीनियरिंग की तैयारी कर सके। परंतु उसे दुख इस बात का था कि वह घर का अकेला लड़का है और अपने मां-बाप को छोड़कर जा रहा है। घर में रहकर वह कम से कम अपने मां-बाप के हर काम में हाथ तो बंटाता था। 

अब उसके जाने के बाद उन्हें देखने वाला कोई नहीं होगा। माहौल बहुत ही भावुक था। मां-बाप चाहकर भी रोक नहीं सकते थे क्योंकि अमित ने ही जाने की जिद की थी। अब अमित को भी दुख हो रहा था कि कैसे उन्हें छोड़कर जाए। एक तरफ भविष्य था तो दूसरी ओर परिवार। एक तरफ कर्म है तो दूसरी ओर बेटा होने का धर्म। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। जैसे-तैसे अपने मन को मार कर वह घर से निकल गया। 

अभी उसे गए हुए घंटा भर भी नहीं हुआ था कि गांव वालों ने अमित को वापस आते देखा। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या। परंतु अब वह खुश था। उसके चेहरे पर कहीं भी दुख का भाव नहीं था। उसने घरवालों को बताया कि अब वह कोचिंग के लिए शहर नहीं जा रहा है बल्कि कोचिंग को घर लेकर आया है। लोग हैरान थे कि यह क्या कह रहा है। तभी उसने अपनी जेब से अपना नया स्मार्टफोन निकाला और दिखाया कि यही है कोचिंग। अब इसी से होगी तैयारी। 

एक-एक कर उसने अपनी कोचिंग के बारे में घरवालों को जानकारी देनी शुरू कर दी कि किस तरह वह अपने फोन से ही तैयारी करेगा। जितना पैसा वह कोचिंग में लगाता उतने पैसे में वह स्मार्टफोन खरीद लाया है। अब अपने घर परिवार के साथ रह कर अपने सपने को पूरा करेगा। यह सपना सिर्फ अमित का नहीं बल्कि कई भारतीयों का है कि वह घर पर रह कर ही पढ़ाई पूरी करें। सुविधा के अभाव में ऐसा कर नहीं सकते और शहर की ओर रुख करना पड़ता है। 

परंतु अब जमाना बदल गया है और कोचिंग गांवों या यूं कहें कि घरों में उपलब्ध हो रहे हैं। हाल के दिनों में भारत में ई-लर्निंग को लेकर ऐसी ही कोशिशें देखने को मिली हैं। सिर्फ कोचिंग ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा क्लास और स्कूल भी मोबाइल पर उपलब्ध है। 

क्या है ई-लर्निंग
ई-लर्निंग, ई और लर्निंग दो शब्दों के योग से बना है जहां ई शब्द इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यम का सूचक है। वहीं लर्निंग का आशय पढ़ाई से। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यम से दी जाने वाली किसी भी प्रकार की शिक्षा को ई-लर्निंग कहा जाता है। हालांकि आज मोबाइल पर विशेष जोर है लेकिन कंप्यूटर आधारित शिक्षा और इंटरनेट आधारित शिक्षा इत्यादि भी ई-लर्निंग ही कही जाती हैं। इसमें शिक्षा का माध्यम सिर्फ किताब न होकर, पिक्चर, वीडियो, आवाज या फिर टेक्स्ट भी हो सकते हैं। 


ई-लर्निंग का सबसे पहला प्रयोग वर्ष 1960 में अमेरिका में देखा गया था। जहां शिकागो में यूनिवर्सिटी ऑफ लीनियोस में क्लासरूम के सभी कंप्यूटर्स को एक सर्वर से कनेक्ट किया गया था। सभी छात्र उस कंप्यूटर को एक्सेस कर लेक्चर सुन सकते थे। यह प्रयोग बहुत ही कामयाब रहा और इसके बाद इस तरह के प्रयोग अक्सर देखने को मिले। 

भारत की बात करें तो आपको याद होगा कि दूरदर्शन द्वारा यूजीसी कार्यक्रम प्रसारित किए जाते थे। टीवी पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम को देश में ई-लर्निंग की पहली कोशिश कहा जा सकता है। उस वक्त यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय भी था। परंतु कार्यक्रम की कमी यह थी कि एक वक्त पर एक ही पाठ्यक्रम को पूरे देश में प्रदर्शित किया जाता था जबकि हर किसी की जरूरत अलग होती है। 

ऐसे में जरूरत थी ऐसे प्लेटफॉर्म की जहां से लोगों की जरूरत के हिसाब से पाठ्यक्रम को पेश किया जा सके। हालांकि उस वक्त टीवी और रेडियो ही इलेक्ट्रॉनिक्स के माध्यम थे इसलिए व्यक्ति विशेष के आधार पर पाठ्यक्रम बनाना संभव नहीं था लेकिन आज जब इंटरनेट और मोबाइल हर जगह और हर किसी के हाथ में उपलब्ध है तो इस सेवा को मुहैया कराया जा सकता है। जहां कहीं इंटरनेट केबल नहीं है वहां मोबाइल तो उपलब्ध है ही। यही वजह है कि आज भारत में ई-लर्निंग की चर्चाएं गर्म हैं। सरकार से लेकर निजी संस्थान और गैरी सरकारी संस्थान भी इस दिशा में बेहतर प्रयास कर रहे हैं। 

टीवी पर जहां ई-लर्निंग के लिए वीडियो और वायस माध्यम होता है। वहीं इंटरनेट पर टेक्स्ट, वीडियो, पिक्चर और वायस हो सकता है। जबकि मोबाइल और टैबलेट की बात करें तो यहां एप्लिकेशन के माध्यम से ई-लर्निंग सेवा मुहैया कराई जाती है। ई-लर्निंग एप्लिकेशन में पाठ्यक्रम टेक्स्ट, वीडियो, पिक्चर और वॉयस आधारित होती है। आप अपने फोन में जैसे गेम खेलते हैं वैसे ही एप्लिकेशन के माध्यम से पढ़ाई कर सकते हैं। विभिन्न क्लास और पाठ्यक्रमों और अभ्यास पेपर डिजिटल फॉर्मेट में एप्लिकेशन के माध्यम से मोबाइल और स्मार्टफोन पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। 

कैसी हैं सेवाएं
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि ई-लर्निंग को तभी संभव बनाया जा सकता है जब सूचनाएं डिजिटल हों। भारत में सूचनाएं फिलहाल डिजिटल नहीं हैं लेकिन इस दिशा में हम प्रयासरत हैं और जल्द ही डाटा डिजिटल हो जाएगा।’ कपिल सिब्बल के इस बयान से यह तो जाहिर हो गया कि सरकार ई-लर्निंग को लेकर गंभीर है और कोशिश कर रही है। परंतु सरकार से ज्यादा निजी कंपनियां उत्साहित हैं। भारत में उन्हें ई-लर्निंग को लेकर बेहतर भविष्य नजर आ रहा है। 


सरकार के पास डाटा डिजिटल हो न हो, निजी कंपनियों ने तो डाटा डिजिटल कर दिया है और ई-लर्निंग से संबंधित कई बेहतर प्रयास भी जारी है। हालांकि इस दिशा में पहल सरकारी कोशिश के बाद ही हुई है जब भारत सरकार द्वारा कम कीमत में आकाश टैबलेट का वितरण किया गया था। इसके बाद तो मानो कम रेंज के टैबलेट की बाढ़ सी आ गई। इतना ही नहीं, टैबलेट लोगों के हाथों में आने के साथ ही कई कंपनियों ने कंटेंट के क्षेत्र में भी बेहतर काम किया है और आज ई-लर्निंग के लिए ढेर सारी एप्लिकेशन और किताबें ऑन लाइन उपलब्ध हैं।

इस बारे में सुनीत तुली कहते हैं, सीईओ, प्रेसिडेंट, डाटाविंड ‘डाटाविंड टैबलेट के माध्यम से छात्रों को हम उनकी भाषा में पाठ्यपुस्तक मुहैया कराते हैं। डाटाविंड टैबलेट में एनसीईआरटी की किताबें इंग्लिश, हिंदी और उर्दू भाषा में उपलब्ध हैं। हमें मालूम है कि कई ऐसे छात्र हैं जो पहली बार टैबलेट का उपयोग कर रहे होते हैं इसलिए हर आयु और कक्षा के हिसाब से आकाश टैबलेट में कंटेंट उपलब्ध होते हैं।’ गौरतलब है कि डाटाविंड ने ही सरकार के साथ मिलकर आकाश टैबलेट भारत में लांच किया था। 

इस बाबत डेली ऑब्जेक्ट के फाउंडर व सीईओ, पंकज गर्ग कहते हैं, ‘सरई सहज ई-विलेज, जो सरई इंफ्रास्ट्रक्चर की सहायक कंपनी है, ने हाल में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ई-लर्निंग सेवा मुहैया कराने के लिए इंदिरा गांधी नेशनल ओपन इंस्टीट्यूट के साथ समझौता किया है। जहां ग्रामीण भारत के लिए कम कीमत पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कंटेंट मुहैया कराए जाएंगे।’

वहीं एचपी वर्ष 2011 से ही ई-लर्निंग के लिए भारत में एचपी लैब इन बॉक्स की सेवा मुहैया करा रहा है। कंपनी नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के साथ मिलकर तत्काल कक्षा नाम से ई-लर्निंग कार्यक्रम चला रही है। इसके तहत भारत के ग्रामीण और दूर दराज के इलाकों में मोबाइल के माध्यम से शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। इसी प्रयास को और तेज करते हुए कंपनी ने हाल में लिक्विड ई-लर्निंग सर्विस के साथ समझौता किया है। एचपी लैब इन बॉक्स इसके तहत लिक्विड बाइलिंगुअल सॉफ्टवेयर उपलब्ध होगा। जहां लिक्विड सॉफ्टवेयर के माध्यम से प्रशिक्षण और प्रशिक्षकों के लिए कंटेंट मुहैया कराएगा।

इस क्षेत्र में एचसीएल भी पीछे नहीं है कंपनी ने माई एडू वल्र्ड नाम से सेवा शुरू की है जहां केजी क्लास से लेकर उच्च क्लास तक के कोर्स के कंटेंट डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध हैं। इसके अलावा विभिन्न क्लास और बोर्ड के पाठ्यक्रम के कंटेंट भी उपलब्ध हैं। माई एडू वर्ल्ड में 25 हजार से ज्यादा प्रश्नोत्तरी उपलब्ध हैं और 15 हजार से ज्यादा क्विज हैं। इतना ही नहीं, ई-लर्निंग के लिए ईबुक्स, वीडियो और 2डी व 3डी एनिमेशन भी है। एमट्रैक की भूमिका भी सराहनीय कही जा सकती है। 

हाल में कंपनी ने राजस्थान सरकार के साथ मिलकर माई क्लास बडी नाम से टैबलेट लांच किया है। इस बारे में एमट्रैक इन्फो सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड के एमडी संदीप आर्या कहते हैं, ‘हमने भारत में पहली बार कोई ऐसा एजुकेशन टैबलेट लांच किया है जिसमें क्षेत्र के आधार पर कंटेंट उपलब्ध है। हमने माई क्लास बडी टैबलेट को खास तौर से स्कूली छात्रों के लिए पेश किया है। इसमें राजस्थान स्टेट बोर्ड की हिंदी पाठ्यक्रम की लगभग सभी किताबें उपलब्ध् हैं। इसके अलावा ई-लाइब्रेरी में 50 हजार से ज्यादा किताबें और बड़े-बड़े कवियों की कविताएं भी हैं।’

भारत में विज्ञान और तकनीकी को प्रोत्साहन देने के लिए गैर सरकारी संस्था साइंस ओलंपियाड फाउंडेशन ने भी ई-लर्निंग के लिए बेहतर कोशिश की है। फाउंडेशन ने एसओएफ नाम से एंडरॉयड एप्लिकेशन पेश की है। इसमें प्रश्नों का सेट है जिससे बच्चे साइंस ओलंपियाड फाउंडेशन के प्रशिक्षण कार्यक्रम की तैयारी कर सकें। इस फाउंडेशन द्वारा कई तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है और एप्लिकेशन में हर किसी के बारे में बेहतर तरीके से जानकारी दी गई है। गौर तलब है कि जिन बच्चों का विज्ञान और आईटी में रुझान होता है उनके लिए एसएफओ प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता है और उन्हें छात्रवृत्ति व अवार्ड भी प्रदान करता है। इनके अलावा पीयरसन, पेंगुविन और वृत्ति जैसी कंपनियां भी ई-लर्निंग के क्षेत्र में प्रयासरत हैं।

क्या हैं फायदे 
कपिल सिब्बल कहते हैं, ‘भारत जैसे देश में आप ई-लर्निंग के माध्यम से ही हर किसी तक शिक्षा मुहैया करा सकते हैं। वायरलेस नेटवर्क आज देश के हर कोने तक उपलब्ध है ऐसे में सरकार की कोशिश यही है कि ई-लर्निंग के माध्यम से जन-जन को शिक्षित कर सके।’  

तकनीक आधारित यह सेवा कई मायनों में खास है। पंकज कहते हैं, ‘ई-लर्निंग शिक्षा के लिए अब तक की सबसे बड़ी खोज कही जा सकती है और भारत जैसे देश ने इसकी जरूरत को समझा है। यह सिर्फ शहरी लोगों के लिए ही नहीं, ग्रामीण भारत को भी शिक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।’

संदीप इस बात से इत्तेफाक रखते ही हैं साथ ही कहते हैं, ‘ई-लर्निंग के माध्यम से न सिर्फ देश की बल्कि वैश्विक स्तर की शिक्षा को छात्रों तक मुहैया कराया जा सकता है।’

तुली कहते हैं, ‘भारत में आज लगभग 12 लाख शिक्षकों की कमी है। ऐसे में ई-लर्निंग के माध्यम से इस कमी को पूरा किया जा सकता है। वहीं आज क्लास में देखेंगे तो एक-एक क्लास में 100 से ज्यादा छात्रा हैं। जहां छात्रों को कंप्यूटर और अपने पाठ्यक्रम पर ध्यान देने का बहुत कम समय मिल पाता है। ऐसे में ई-लर्निंग शिक्षा की नई पद्धती है जहां बस एक बटन दबा कर हर छात्र अपनी जरूरत के हिसाब से पढ़ाई कर सकता है।’ 

तो हम तैयार हैं ई-लर्निंग के लिए
इस वर्ष मार्च में ट्राई द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुल 
इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 164 मिलियन से ज्यादा है और जिसमें प्रति 8 व्यक्तियों से 7 व्यक्ति मोबाइल या टैबलेट से इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। ई-लर्निंग के लिए इससे अच्छी स्थिति और क्या हो सकती है। ई-लर्निंग के लिए आवश्यक है कि कंटेंट ऑन लाइन हो और लोगों वेफ पास डिवायस हो। जहां वे ई-लर्निंग एप्लिकेशन का उपयोग कर सकें। तो आप गौर करेंगे कि आज भारतीय बाजार में न सिर्फ आरंभिक स्तर में टैबलेट उपलब्ध हैं बल्कि स्मार्टफोन भी आम उपभोक्ता के बजट में आ चुका है। इस बारे में सुनीत तुली, ‘भारत में टैबलेट रेवल्यूशन लाने में हमारा बहुत बड़ा योगदान है। यहीं से भारत में ई-ल²नग की नींव रखी गई। ऑन लाइन लर्निंग में अब भी भारत न सिर्फ विश्व के प्रमुख सेवा प्रदाताओं में से एक है बल्कि उपभोक्ता के मामले में भी हम अग्रणी स्थान रखते हैं।’ 

पंकज भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे कहते हैं, ‘तकनीक ने हमारे जीने के तरीके को ही बदल दिया है। दैनिक कार्यों को आसान बनाने में इसने प्रमुख भूमिका अदा की है। इसके माध्यम से आज हर चीज हमारी पहुँच में है। ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में भी तकनीकी के आने से नया बदलाव आया है। मोबाइल तकनीक के माध्यम से शिक्षा को एक नई दिशा और दशा देने की कोशिश की जा रही है।’

संदीप कहते हैं, ‘भारत में 24 आयु वर्ग तक के लोगों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है और शिक्षा ने तो शुरू से ही व्यवसायियों और उद्यमियों को आकर्षित किया है। पिछले 5-6 सालों में निजी संस्थानों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में कई बेहतर प्रयोग देखे गए हैं। आज छात्र भीड़ में पढ़ाई करने के बजाय अपने घर पर शांति से पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे में ई-लर्निंग उनके लिए बेहतर विकल्प है।’

इन कोशिशों को देखकर लगता तो है कि हम ई-लर्निंग के लिए तैयार हैं लेकिन क्या वास्तविक स्थिति यही है या हम सिर्फ तैयारी बता रहे हैं, वास्तविकता नहीं!

अब भी समस्या है?
भारत जैसे देश जहां अभी तक गांव और दूर दराज के इलाकों में स्कूल तक नहीं है वहां अचानक ई-लर्निंग की बात करना थोड़ा बेमानी नहीं होगा? शिक्षा के क्षेत्र में अशिक्षा सबसे बड़ी समस्या है। शहरों में आज स्कूल हैं, कॉलेज हैं, इंटरनेट है और मोबाइल है। शिक्षा का जो भी माध्यम कहेंगे यहां उपलब्ध है। भारत में शुरू से ही शिक्षा के क्षेत्र में समस्या ग्रामीण भारत में रही है और बिना ग्रामीण भारत को जोड़े किसी भी सेवा की सफलता की बात नहीं की जा सकती।

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