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जय हो... दबंग निर्माताओं का स्मार्ट खेल



दोहरे सिम से शुरुआत की थी लेकिन आज स्मार्टफोन सेग्मेंट में भी तहलका मचा रहे हैं। दबंग भारतीय मोबाइल निर्माताओं ने देसी स्टाइल में बाजार में कदम रखा और आज स्मार्टफोन सेग्मेंट में भी अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। भारतीय मोबाइल बाजार में एमएनसी और भारतीय निर्माताओं के बीच जारी इस जंग पर मुकेश कुमार सिंह और अभिजित अहस्कर की विशेष रिपोर्ट।


यह बात सच है कि यहां कुछ निश्चित नहीं है। समय सब कुछ बदल देता है। कभी स्मार्टफोन का पर्याय सिंबियन फोन हुआ करते थे लेकिन आज सिंबियन को पूरी तरह बंद कर दिया गया है। भारतीय निर्माताओं पर ही नजर डालें तो देखेंगे कि पहले इन्हें दूसरे दर्जे में रखा जाता था। इन्हें निम्न क्वालिटी के फीचर फोन के लिए लोग जानते थे लेकिन आज स्मार्टफोन सेग्मेंट में भी एमएनसी ब्रांडों को न सिर्फ कड़ी टक्कर दे रहे हैं बल्कि कई ब्रांडों से आगे हैं।


भारतीय मोबाइल बाजार (Indian Mobile Market) में जब भारतीय मोबाइल निर्माताओं (Indian Mobile Manufacturers )ने कदम रखा तो किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी कि एक दिन स्मार्टफोन सेग्मेंट में ये नोकिया, सोनी और एचटीसी जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ देंगे। परंतु बेहतर मार्केटिंग और शानदार डिस्ट्रीब्यूशन की बदौलत भारतीय मोबाइल बाजार में इन्होंने न सिर्फ अपने आप को साबित किया बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान कायम करने में भी सफल रहे। जिस उत्साह से आज ये भारतीय मोबाइल निर्माता आगे बढ़ रहे हैं ऐसे में यदि कल नंबर एक स्मार्टफोन निर्माता हो जाएं तो शायद किसी को आश्चर्य नहीं होगा।


हाल में आईडीसी (IDC) द्वारा एक रिपोर्ट (Report) जारी की गई जिसके आंकड़े चैंकाने वाले थे। हालांकि अब भी स्मार्टफोन बाजार पर सैमसंग का राज कायम है लेकिन नंबर दो और तीन पर क्रमशः माइक्रोमैक्स और कार्बन सरीखे भारतीय निर्माताओं ने अपनी जगह बना ली है और नंबर एक की कुर्सी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। हाल ही में आईडीसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार स्मार्टफोन सेग्मेंट में सैमसंग,(#Samsung) जहां 30 फीसदी हिस्सेदारी के साथ नंबर एक पर है। वहीं दूसरे नंबर पर काबिज माइक्रोमैक्स (#Micromax) की हिस्सेदारी 17.1 फीसदी है। कार्बन 11.2 फीसदी (#karbonn) हिस्सेदारी के साथ तीसरे नंबर पर है। सोनी, एलजी और एचटीसी सरीखी कंपनियां इनसे काफी पीछे हैं।
परंतु सवाल यह है कि कल तक दूसरे दर्जे का व्यवहार झेल रहीं इन भारतीय कंपनियों ने ऐसी कौन सी जादू की छड़ी घुमाई जो अचानक मोबाइल उपभोक्ताओं का विश्वास इन पर हो गया। क्या वास्तव में आज ये इतने ताकतवर हो चुके हैं कि अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं को टक्कर दे सकें?


‘वर्ष 2012 तक अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड भी ज्यादातर कम रेंज के फीचर फोन तक सीमित थे। उसका सबसे बड़ा कारण था कि भारत में हर जगह 3जी नेटवर्क नहीं था। उस वक्त हम भी ज्यादातर कम रेंज के फीचर फोन पर केंद्रित थे। परंतु पिछले साल से 3जी नेटवर्क बहुत बेहतर हो गया। यही वजह है कि भारतीय मोबाइल निर्माता भी अब ऊँची रेंज के फोन लांच कर रहे हैं।’
                                                                                        -प्रदीप जैन, मैनेजिंग डायरेक्टर, कार्बन मोबाइल
 

बढ़ते कदम
जिस तरह रिपोर्ट सामने आई है और उपभोक्ताओं का उत्साह भारतीय निर्माताओं के प्रति देखने को मिलता है उसे देखकर तो कहा जा सकता है कि आज भारतीय कंपनियां इतनी ताकतवर हो गई हैं कि वे अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं को टक्कर दे सकती हैं। आईडीसी की रिपोर्ट पर नजर डालते हैं तो आप पाएंगे कि भारत के मुख्य पांच स्मार्टफोन निर्माताओं में सैमसंग और नोकिया के अलावा कोई भी अंतर्राष्ट्रीय निर्माता नहीं है। तीन भारतीय निर्माता शुमार हो गए हैं। सोनी, एलजी, एचटीसी और ब्लैकबेरी सरीखी बड़ी कंपनियां इस दौड़ से बाहर हैं। आईडीसी की रिपोर्ट (IDC Report) में माइक्रोमैक्स और कार्बन के बाद लावा का नाम है। (गौरतलब है कि लावा, लावा स्मार्टफोन के अलावा जोलो ब्रांड के तहत भी फोन और टैबलेट पेश करती है।) भारतीय निर्माताओं ने जब स्मार्टफोन सेग्मेंट में कदम रखा तो कुछ लोगों का यही कहना था कि ये नौसीखिया कंपनियां हैं जो दोहरे सिम वाले फीचर फोन तक ही सीमित रहें तो अच्छा है। स्मार्टफोन सेग्मेंट में ये अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं की बराबरी नहीं कर सकतीं। परंतु न सिर्फ दोहरे सिम बल्कि स्मार्टफोन बाजार में भी भारतीय निर्माताओं ने अपने आपको साबित किया है। इस बारे में लावा मोबाइल के को-फाउंडर एंड डायरेक्टर एस एन राय कहते हैं, ‘हां, यह बात सच है कि शुरुआत में स्मार्टफोन के मामले में हम थोड़े पीछे थे लेकिन उस वक्त तक हमें मोबाइल बाजार में आए हुए बहुत ज्यादा समय भी नहीं हुआ था। परंतु आज आप स्थिति देख सकते हैं। आज भारत के प्रमुख पांच स्मार्टफोन निर्माताओं में तीन भारतीय निर्माता हैं और मैं दावे के साथ इस बात को कह सकता हूं कि अब हमेशा प्रमुख पांच स्मार्टफोन निर्माताओं में तीन भारतीय निर्माता होंगे ही।’

पिछले कुछ सालों में सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह रही कि स्मार्टफोन बाजार को भांपते हुए भारतीय मोबाइल निर्माताओं ने स्मार्टफोन सेग्मेंट में फोन की अच्छी श्रृंखला खड़ी कर दी है। चाहे बात माइक्रोमैक्स की करें, लावा की या फिर  इंटेक्स की। हर किसी के पास आज लगभग दस मॉडल स्मार्टफोन के हैं।


‘शुरुआत में स्मार्टफोन में हम पीछे थे लेकिन उस वक्त तक हमें मोबाइल सेग्मेंट में आए हुए बहुत ज्यादा समय भी नहीं हुआ था। परंतु आज आप स्थिति देख सकते हैं। आज भारत के प्रमुख पांच स्मार्टफोन निर्माताओं में तीन भारतीय निर्माता हैं। मैं दावे के साथ इस बात को कह सकता हूं कि अब हमेशा प्रमुख पांच स्मार्टफोन निर्माताओं में तीन भारतीय निर्माता होंगे ही।
                                                                              -एस एन राय, को-फाउंडर व डायरेक्टर, लावा मोबाइल
 

समय के अनुसार बदली नीति
वर्ष 2005 में स्पाइस (Spice) और फ्लाई (FLY) सरीखी कुछ कंपनियों ने भारतीय मोबाइल बाजार में दस्तक दी। उस वक्त फीचर फोन का चलन था। भारतीय निर्माताओं ने फीचर फोन को कम कीमत में लांच करना शुरू कर दिया। हालांकि उस वक्त तक भी इन्हें बहुत कामयाबी नहीं मिली थी लेकिन इनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ दोहरा सिम। इसके बाद भारतीय निर्माता एक के बाद एक कई छोटी-बड़ी खासियतों को हथियार बना सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए। 


इस बारे में सिमट्रानिक्स के सीनियर जनरल मैनेजर अनूप कुमार कहते हैं, ‘भारतीय कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की रणनीतियों में बहुत अंतर है। अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं की रणनीतियां निश्चित होती हैं और उन्हीं पर उन्हें कार्य करना होता है। परंतु भारतीय निर्माताओं की रणनीतियां बहुत लचीली हैं और यही इनकी सबसे बड़ी खासियत है। वे समय के अनुसार उनमें बदलाव कर सकती हैं।’
 

‘भारतीय मोबाइल बाजार जो कीमत के मामले में बेहद ही प्रतियोगी है। यहां 20 हजार तक का फोन लांच करने से पहले उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाते हैं जिस कीमत में यह फोन है उतने फीचर के लिए अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं के फोन के लिए आपको दोगुनी कीमत चुकानी होगी। ऐसे में फोन महंगा नहीं बल्कि सस्ता हो जाता है।
                                                                   -केशव बंसल, डायरेक्टर-मार्केटिंग मोबाइल, इंटेक्स टेक्नोलाजी
 


सफलता की पहली सीढ़ीः दोहरा सिम
वर्ष 2007 में सबसे पहले स्पाइस ने और फिर फ्लाई ने दोहरा सिम फोन भारतीय मोबाइल बाजार में पेश किया। यह वह समय था जब भारत में मोबाइल नेटवर्क की स्थिति अच्छी नहीं थी। मेट्रो शहरों में यह समस्या कम थी लेकिन छोटे शहरों और गांवों में यह समस्या विकट थी। ऐसे में दोहरा सिम फीचर को लोगों ने बेहद सराहा और भारतीय निर्माताओं की ओर रुख करने लगे। चंद सालों में ही इनकी संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ। वर्ष 2008 आते-आते भारतीय मोबाइल निर्माताओं की संख्या 150 से ज्यादा हो गई और हर किसी के पास दोहरा सिम वाला फोन ही होता था। इस समय तक अंतर्राष्ट्रीय निर्माता छाए हुए थे लेकिन उनके पास दोहरा सिम फोन की कमी थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि दोहरा सिम फोन ने भारतीय निर्माताओं को उपभोक्ताओं तक पहुँचाया।

बैटरी ने डाली जान
भारत में शुरू से ही बिजली की समस्या है। आज भी कई गांवों तक बिजली नहीं है और जहां है वहां दिन में कितने घंटे रहेगी यह कोई गारंटी नहीं। नोकिया के फोन गांवों और छोटे शहरों में इसलिए ज्यादा पसंद किए जाते थे क्योंकि उसमें बैटरी बैकअप बहुत शानदार होता था। ऐसे में भारतीय निर्माताओं ने बिजली की समस्या से जूझ रहे भारतीय उपभोक्ताओं को मोबाइल सेवा से जोड़ने के लिए बैटरी को भी हथियार बनाया।
वर्ष 2008 में जब माइक्रोमैक्स ने अपना पहला टीवी विज्ञापन लांच किया तो उसकी टैग लाइन थी ‘मोबाइल का बाप।’ उस वक्त राहुल शर्मा, सीईओ माइक्रोमैक्स (वर्तमान में को-फाउंडर), ने कहा था ‘हमने माइक्रोमैक्स एक्स1आई फोन लांच किया है जिसमें 30 दिन का स्टैंडबाय टाइम है। मोबाइल का बाप स्लोगन का काफी अच्छा रिस्पान्स आया और हमारा यह फोन सबसे ज्यादा बिकने वाले फोनों में से एक रहा।’
इसके बाद तो कोई भी भारतीय निर्माता अपना फोन लान्च करता था तो उसमें सबसे पहले वह बैटरी की ही बात करता था। बैटरी में एमएएच की दौड़ यहां से शुरू हुई और भारतीय निर्माता एक कदम और ऊपर आने में सफल हुए।

क्वर्टी का कमाल
उस वक़्त क्वर्टी फोन का जिक्र आते ही सबसे पहले ब्लैकबेरी और फिर नोकिया का नाम आता था। परंतु दोनों कंपनियों के क्वर्टी कीपैड वाले फोन थोड़े महंगे थे। ऐसे में बढ़ते मैसेजिंग प्रचलन के बीच भारतीय निर्माताओं ने क्वर्टी कीपैड को निशाना बनाया और कम रेंज में इसे पेश किया। माइक्रोमैक्स ने सबसे पहले क्वर्टी में क्यू3 मॉडल पेश किया। यह फोन बेहद ही लोकप्रिय हुआ और इसके बाद तो समझो मोबाइल बाजार में क्वर्टी फोन की होड़ सी लग गई। माइक्रोमैक्स ने तो अपने क्वर्टी फोन क्यू5 का टीवी विज्ञापन तक पेश किया। इसे फेसबुक फ्रेंडली फोन के तौर पर पेश किया गया। हालांकि यह ब्लैकबेरी के समान तेज नहीं था लेकिन क्वर्टी का बेहतर एहसास कराने में सक्षम था। इस तरह कार्बन ने के10 और स्पाइस मोबाइल ने भी अपने क्वर्टी फोन से लोगों को रू-ब-रू कराया। क्वर्टी का यह अहसास इतना अच्छा था कि छोटे शहरों और गांवों के बाद अब बड़े शहरों और मेट्रो शहरों में भी भारतीय निर्माताओं के फोन अपना स्थान बनाने लगे थे।


‘फोन की खरिदारी से पहले एक उपभोक्ता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका फोन किस ब्रांड का है। अगर फोन के स्पेसिपिफकेशन अच्छे हैं तो वह किसी भी ब्रांड का फोन लेगा।’                                                                                     -टीएम राम कृष्णा, सीईओ डिवाइसेस, स्पाइस रिटेल

टच और म्यूजिक का भी था सहारा
दोहरा सिम, बैटरी और क्वर्टी को छोड़ दें तो म्यूजिक और टच फीचर को भी कम कीमत
में लाने का श्रेय भारतीय निर्माताओं को जाता है। भारत में जब टच स्क्रीन आया तो बेहद महंगा था लेकिन निम्न क्वालिटी ही सही, भारतीय निर्माताओं ने टच फीचर को कम कीमत में पेश किया। वहीं एफएम और तेज म्यूजिक पर भी उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया। इसका फायदा यह मिला कि छोटे शहरों और गांवों में जहां मनोरंजन के साध्न कम थे लोग भारतीय निर्माताओं के फोन की ओर रुख करने लगे। कम कीमत में म्यूजिक और टच उपलब्ध होता था। 
 
स्मार्टफोन पर खेला स्मार्ट दांव
परंतु भारतीय निर्माताओं के लिए अब भी जो कोना खाली था वह था स्मार्टफोन का। इस रेंज में कोई भी निर्माता अब तक नहीं आया था। स्मार्टफोन में अब नोकिया सिंबियन आपरेटिंग के साथ, एप्पल का आईओएस आपरेटिंग के साथ और ब्लैकबेरी आपरेटिंग था। इसके अलावा एचटीसी और सैमसंग के कुछ फोन थे जो विंडोज आपरेटिंग पर कार्य करते थे। ये सारे आपरेटिंग महंगे थे। इनके लिए इन्हें भारी रायल्टी चुकानी पड़ती और उस वक्त तक कम रेंज में टच स्क्रीन फीचर के साथ रजिस्टिव तकनीक ही थी। जो स्मार्टफोन के लिए अच्छी तकनीक नहीं कही जा सकती थी। परंतु स्थितियां बदलने लगी थीं।

एक ओर कपैसिटिव टच स्क्रीन तकनीक सस्ते में उपलब्ध होने लगी थी तो दूसरी ओर एंड्रॉयड  आपरेटिंग दस्तक दे चुका था। एंड्रॉयड आपरेटिंग पूरी तरह मुफ्त है। ऐसे में भारतीय निर्माताओं को अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं से टक्कर लेने के लिए बेहद ही उपयुक्त हथियार मिल गया। अपने बेहतर फीचर और स्मार्ट आपरेटिंग की बदौलत एंड्रॉयड जल्दी लोकप्रिय होने लगा। एंड्रॉयड के आगे सिंबियन और ब्लैकबेरी अपनी लोकप्रियता खोने लगे। ऐसे में भारतीय निर्माताओं ने स्मार्टफोन में एंड्रॉयड के साथ दस्तक दी।


वर्ष 2010 में माइक्रोमैक्स और उसके बाद स्पाइस, कार्बन और लावा जैसी कंपनियों ने स्मार्टफोन को लांच किया। जहां अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों के पास महंगे स्मार्टफोन थे वहीं भारतीय निर्माता स्मार्टफोन में भी कम कीमत को हथियार बनाया।


‘भारतीय कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की  रणनीतियों में बहुत अंतर है। अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं की रणनीतियां निश्चित होती हैं और उन्हीं पर उन्हें कार्य करना होता है। परंतु भारतीय निर्माताओं की रणनीतियां बहुत लचीली है और यही इनकी सबसे बड़ी खासियत है। वे समय के अनुसार उनमें बदलाव कर सकती हैं।’
                                            -अनूप कुमार, सीनियर जनरल मैनेजर, सिमट्रानिक्स सेमिकंडक्टर लिमिटेड


हम किसी से कम नहीं
हाल में आईडीसी द्वारा जारी रिपोर्ट में स्मार्टफोन सेग्मेंट की जो तस्वीर उभर कर आई है वह वाकई चैंकाने वाली है। भारत में 230 फीसदी की दर से स्मार्टफोन बाजार विकास कर रहा है। ऐसा नहीं है कि यह तेजी आज है। बल्कि पिछले कुछ सालों से स्मार्टफोन बाजार में इस तरह का विकास देखा जा रहा है। यही वजह है कि भारतीय फोन निर्माताओं ने स्मार्टफोन की ओर रुख किया।

हालांकि यह बात सच है कि भारतीय निर्माताओं ने कम कीमत के साथ स्मार्टफोन में दांव खेला था लेकिन आज वे उच्च श्रृंखला में भी अपने पैर पसार चुके हैं। हाल में माइक्रोमैक्स ने कैनवस टर्बो, इंटेक्स ने आक्टा एक्वा, कार्बन टाइटेनियम एक्स और लावा ने आइरिस प्रो 30 को उतारा है। परंतु फिर सवाल यही है कि भारतीय निर्माता जो एक समय निम्न क्वालिटी के लिए जाने जाते थे आज इतने सक्षम हो गए हैं या फोन की क्वालिटी ऐसी हो गई है कि उपभोक्ता उनके फोन के लिए मोटी रकम चुका सकं!

इस बारे में टीएम राम कृष्णा, सीईओ- डिवायस, स्पाइस रिटेल, कहते हैं, ‘आज उपभोक्ता नई तकनीक का उपयोग करने का इच्छुक है। परंतु वहां उन्हें बजट भी देखना होता है। ऐसे में हम बेहतर तकनीक को कम रेंज में पेश करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में वे उपभोक्ता जो फीचर फोन से स्मार्टफोन में अपग्रेड करना चाहते हैं उनके लिए बजट स्मार्टफोन तो बेहतर है। परंतु जो लोग वास्तव में नई तकनीक का उपयोग करना चाहते हैं उनके लिए हमारे पास बेहतर स्पेसिफिकेशन का फोन है। एक उपभोक्ता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका फोन किस ब्रांड का है। अगर फोन के स्पेसिफिकेशन अच्छे हैं तो वह किसी भी ब्रांड का फोन लेगा।’

इस बारे में एसएन राय कहते हैं, ‘आज भारतीय निर्माता पूरी तरह परिपक्व हो चुके हैं। उन्हें मालूम है कि भारतीय उपभोक्ता को क्या चाहिए। जहां तक क्वालिटी की बात है तो आज वह अंतर्राष्ट्रीय निर्माता से कम नहीं है।’

केशव बंसल, डायरेक्टर-मार्केटिंग मोबाइल, इंटेक्स, कहते हैं, ‘पिछले दो साल के भारतीय मोबाइल बाजार पर जब आप नजर डालते हैं तो देखेंगे कि भारतीय निर्माताओं के प्रति उपभोक्ताओं में विश्वास बढ़ा है। भारतीय मोबाइल बाजार जो कीमत के मामले में बेहद ही प्रतियोगी है। यहां 20 हजार तक का फोन लांच करने से पहले उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाते हैं जिस कीमत में यह फोन है उतने फीचर के लिए अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं के फोन के लिए आपको दोगुनी कीमत चुकानी होगी। ऐसे में हैंडसेट महंगा नहीं बल्कि सस्ता हो जाता है। हमने मल्टी एप्लिकेशन, आक्टाकोर और हाईडेफिनेशन तकनीक को आज कम कीमत में पेश किया है।’
परंतु इनसे अलग कार्बन मोबाइल के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप जैन कहते हैं, ‘वर्ष 2012 तक आप देखेंगे तो पाएंगे कि खुद अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड ज्यादातर कम रेंज के फीचर फोन तक सीमित थे। उसका सबसे बड़ा कारण था कि भारत में हर जगह 3जी नेटवर्क नहीं था। यही कारण था कि हम भी ज्यादातर कम रेंज के फीचर फोन पर केंद्रित थे। परंतु आपने ध्यान दिया होगा कि पिछले साल में 3जी नेटवर्क बहुत बेहतर हो गया। यही वजह है कि भारतीय मोबाइल निर्माता भी अब उफंची रेंज के फोन लान्च कर रहे हैं।’

विज्ञापन ने डाली जान
आपको याद होगा कि एक समय नोकिया के लिए शाहरुख खान, सैमसंग के लिए आमिर खान, सोनी के लिए
ऋतिक रोशन और मोटोरोला के लिए अभिषेक बच्चन विज्ञापन कर रहे थे। वह यह समय था जब अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल निर्माता भारतीय बाजार में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे। एक बार जब उपभोक्ताओं के बीच पहचान बन गई तो आज वे विज्ञापन से गायब हो गए।
यही नीति अब भारतीय निर्माताओं ने भी अपनाई। अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं के इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए उन्होंने बालीवुड और हालीवुड का सहारा लिया है। माइक्रोमैक्स ने पहले अक्षय कुमार को ब्रांड एंबेसेडर बनाया और अब ह्यूग जैकमैन है। वहीं इंटेक्स के लिए फरहान अख्तर विज्ञापन कर रहे हैं। जबकि आईबाल के लिए करीना कपूर विज्ञापन कर रही हैं। कार्बन के लिए गौतम गंभीर और वीरेंन्द्र सहवाग विज्ञापन कर चुके हैं। जोलो ब्रांड के लिए अंशुमन विज्ञापन कर रहे हैं। हाल में एक और भारतीय मोबाइल व टैबलेट निर्माता आइस इलेक्ट्रानिक्स ने आमिर खान की फ़िल्म धूम3  के साथ समझौता किया जहां धूम3 ब्रांड के तहत टैबलेट, फोन और एक्सेसरीज लान्च किए जाएंगे।

बेहतर कवर ड्राइव
हर किसी को मालूम है कि भारत में क्रिकेट को जुनून की हद तक लोग पसंद करते हैं। क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी देखते ही बनती है। ऐसे में व्यवसाय जगत भी इसे भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। मोबाइल जगत की बात करें तो शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं ने की थी और अब भारतीय निर्माता भी कूद पड़े हैं। बल्कि माइक्रोमैक्स ने अपना पहला टीवी विज्ञापन ही क्रिकेट मैच के दौरान शुरू किया था। वहीं हाल में भी आपने देखा होगा कि माइक्रोमैक्स ने एशिया कप को स्पान्सर किया था, जबकि वेस्टइंडीज में संपन्न हुए ट्राई नेशन सीरीज का स्पान्सर सेलकान था। वहीं कार्बन मोबाइल टी20 चैंपियन लीग से जुड़ा। इसका फायदा इन्हें यह मिला कि एक साथ करोड़ों दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने में सपफल हुए।

बनाई अंतर्राष्ट्रीय पहचान
भारतीय मोबाइल निर्माताओं की सफलता की कहानी यहीं पर नहीं रुकती। कल तक इन्हें भले ही दूसरे दर्जे का जाना जाता हो लेकिन आज बड़े-बड़े नाम इनके साथ जुड़ने को तैयार हैं और अब ये अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान बना चुके हैं। पहले इन्हें निम्न क्वालिटी का समझा जाता था लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह की घोषणाएं इन्होंने की हैं उसने न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं के होश उड़ा दिए बल्कि निम्न क्वालिटी की इनकी छवि को भी बहुत हद तक साफ करने में मददगार साबित हुआ है।

जोलो मोबाइल ने अपना पहला डिवाइस ही इंटेल ब्रांड के साथ मिलकर उतारा। यह भारत का पहला फोन था जिसमें इंटेल का चिपसेट उपयोग हुआ था। इस समझौते ने जोलो को एक अलग पहचान दिलाई। जोलो का सफर इतने पर ही नहीं रुका इसके बाद कंपनी ने क्वालकाम, एनवीडिया और ब्राडकाम के प्रोसेसर पर भी अपने फोन पेश किए जो बेहतर क्वालिटी के लिए विश्व भर में चलन में हैं। अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं के फोन भी इन्हीं कंपनियों के चिपसेट पर पेश किए जाते हैं। जोलो के बाद कई अन्य भारतीय निर्माता हैं जो इन चिपसेट पर फोन का निर्माण कर चुके हैं। वहीं माइक्रोमैक्स कैनवस टर्बो के विज्ञापन के लिए ह्यूग जैकमैन को चुना है। इसके माध्यम से कंपनी ने अपने आप को अंतर्राष्ट्रीय निर्माता के समकक्ष लाने की कोशिश की है। यह बात तो जाहिर है कि ह्यूग जैकमैन के विज्ञापन के लिए माइक्रोमैक्स ने मोटी कीमत भी चुकाई होगी लेकिन इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में भी बेहद सफलता मिली है। वहीं हाल में जोलो ने विश्व की प्रमुख फुटबाल क्लब लीवरपूल के साथ समझौता किया है। जहां कंपनी लीवरपूल ब्रांडिंग के तहत फोन का निर्माण करेगी। फुटबाल की लोकप्रियता किसी ने छुपी नहीं है और विश्व में सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए जोलो का यह कदम बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है।

सीईएस में दिखाया दम
वैसे तो लास एंजिलिस में आयोजित होने वाले सीईएस (कंज्यूमर इलेक्ट्रानिक शो) में हर साल मोबाइल तकनीक के लिए कुछ नया होता है लेकिन इस बार यदि यह कहा जाए कि यह शो भारतीय निर्माताओं के नाम रहा तो कुछ गलत नहीं होगा। पूरे शो में भारतीय निर्माता छाए रहे। जहां एक ओर माइक्रोमैक्स ने अपना डुअलबुट टैबलेट दिखाया। लैपटैब नाम से पेश किए गए इस टैबलेट को इंटेल के चिपसेट पर पेश किया गया है और इसमें विंडोज और एंड्रॉयड आपरेटिंग का उपयोग एक साथ किया जा सकता है। वहीं जोलो भी पीछे नहीं रहा। सीईएस में कंपनी ने अपना विन टैब पेश किया। इसकी खासियत यह है कि इसे एएमडी ए4 प्रोसेसर पर पेश किया गया था। एएमडी अब तक कंप्यूटिंग चिपसेट के लिए जानी जाती थी लेकिन इसके साथ ही कंपनी ने टैबलेट सेग्मेंट में दस्तक दी है।

तो क्या निकलेंगे सबसे आगे?
इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय निर्माता पहले की अपेक्षा काफी मजबूत स्थिति में हैं और अंतर्राष्ट्रीय निर्माता को टक्कर दे रहे हैं। परंतु एक सावाल जो उपभोक्ता के दिमाग में कल भी था और आज भी है। आफ्टर सेल्स सर्विस! आफ्टर सेल्स सर्विस के मामले में दावे कल भी किए जा रहे थे आज भी, परंतु स्थिति क्या है इससे उपभोक्ता भली भांति परिचित हैं। आज भी भारतीय निर्माता आफ्रटर सेल्स सर्विस के मामले में अंतर्राष्ट्रीय निर्माताओं से काफी पीछे हैं। परंतु जिस तरह की कोशिशें देखी जा रही हैं उससे कहा जा सकता है कि शायद उपभोक्ताओं को अब कुछ बेहतर सर्विस मिले। 


इस बाबत केशव बंसल, डायरेक्टर- मार्केटिंग मोबाइल, इंटेक्स कहते हैं, ‘हमें भली भांति मालूम है कि आफ्टर सेल सर्विस कितनी जरूरी है। हमारा मुख्य मकसद सिर्फ मोबाइल बेचना नहीं है बल्कि बने रहना है। यही सब देखते हुए हमने सर्विस सेंटर पर काफी ध्यान दिया है। पिछले एक साल में हमारे सर्विस सेंटर की संख्या 640 से ज्यादा हो चुकी है जबकि 1,300 से ज्यादा टच प्वाइंट हैं।’

टीएम राम कृष्णा, सीईओ- डिवायस, स्पाइस रिटेल कहते हैं, ‘आफ्टर सेल्स सर्विस ही उपभोक्ताओं के बीच विश्वास कायम करती हैं। हमारे पास काफी सर्विस सेंटर हैं। वहीं बेहतर सर्विस के लिए रिमोट काल नाम से सेवा लांच की है। जहां से कस्टमर एक्जिक्यूटिव फोन पर ही सॉफ्टवेयर सम्बंधित शिकायत का निपटारा करने में सक्षम है।’

परंतु एसएन राय इन सबसे अलग इत्तेफाक रखते हैं। वे कहते हैं, ‘यदि आपको लंबे समय तक बाजार में बने रहना है तो आफ्टर सेल्स सर्विस बेहतर करनी होगी। अंतर्राष्ट्रीय निमार्ताओं की अपेक्षा भारतीय निर्माता काफी देर से आए। ऐसे में शुरुआत में तो वे विक्रय, प्रबंधन और कंपनी
रणनीतियो में उलझे हुए थे। इसलिए कहा जा सकता है कि फ़िलहाल आफ्टर सेल्स सिर्वस के मामले में वे अंतर्राष्ट्रीय निमार्ताओं से थोड़े पीछे हैं। परंतु अब जब पूरी तरह कंपनी व्यवस्थित हो गई हैं तो अब आफ्टर सेल्स सर्विस को ही बेहतर किया जाएगा।’

आगे क्या होगा
जैसा कि हम पहले भी बात कर चुके हैं कि यहां कुछ भी निश्चित नहीं है। कल तक अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल निर्माताओं का एकछत्र राज था। परंतु अब भारतीय निर्माता उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। परंतु आगे क्या होगा?
आपको बता दूं कि इस खेल में और भी ट्विस्ट आने वाला है। कुछ नए खिलाडि़यों ने दस्तक दी है। हालांकि इस बार के खिलाड़ी फिर से बाहरी हैं। और ये वे खिलाड़ी हैं जो हमेशा से खेल खराब करने के लिए ही जाने जाते हैं। भारतीय बाजार में लेनेवो, हुआवई, जेडटीई और जियोनी जैसे चीनी खिलाडि़यों ने दस्तक दी है। हालांकि फ़िलहाल इनकी उपलब्धि बहुत अधिक नहीं है क्योंकि ये नए हैं। परंतु जैसे-जैसे अनुभव होता जाएगा वैसे-वैसे खेल और भी मजेदार होता जाएगा।

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मैं एयरटेल (Airtel) उपभोक्ता हूं। कुछ समय पहले एयरटेल ने मुझसे बिना पूछे मेरे खाते में 400 रुपए काट लिए। जब इसकी शिकायत मैंने कस्टमर केयर में की तो उन्होंने मुझे बेकार या बहाना देते हुए कहा कि मैंने इंटरनेट ब्राउजर का उपयोग किया है। लेकिन मैंने इसका कभी उपयोग नहीं किया था। एयरटेल ने ऐसा पहली बार नहीं किया बल्कि मेरे अन्य एयरटेल नंबरो के खाते से भी पैसे काट चुकी है। अब मैं अपने दोनों एयरटेल के नंबर बदल रहा हूं लेकिन उससे पहले मैं एयरटेल से पूरा स्पष्टीकरण चाहता हूं। -प्रीतमभर प्रकाश   नोकिया का जवाब प्रतीक्षा में  

शोले 2013

मोबाइल जगत रामगढ़ है और यह साल शोले तो जरा सोचिए कि इस वर्ष लांच होने वाले कौन से फोन किसकी भूमिका में होंगे। कोई गब्बर बनकर किसी की खुशियों में आग लगा रहा होगा तो कोई ठाकुर की तरह ही भौंह चढ़ाकर बदला लेने की बात कर रहा होगा। हो-हल्ला और गर्माहट से भरे इस साल के अंत में माय मोबाइल बैनर तले पेश है शोले 2013   ‘अब तेरा क्या होगा कालिया’ पर्दे पर जब यह डायलाग अमजद खान ने अपने डरावने अंदाज में बोला तो पूरा सिनेमा हाल सिहर उठा। धर्मेन्दर  ने जब कहा कि ‘बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ तो पूरा हाल एक बार जोश से भर उठा। एके हंगल का डायलाग ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई’ से हर ओर मायूसी छा गई। कुछ ऐसा ही जलवा है फ़िल्म शोले का। आज भी भारतीय फ़िल्म  इतिहास की सबसे हिट फ़िल्म में शोले गिनी जाती है। हर किरदार एक अलग छाप छोड़ता है, हर डायलाग यादगार है और हरेक सीन आज भी नजर के सामने घूमता है। अमिताभ से लेकर असरानी तक हर किसी ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।  आप यही सोच रहे होंगे कि मोबाइल स्तम्भ जनाब शोले की बातें क्यों बघार रहे हैं। तो आपको बता दूं कि मोबाइल जगत का यह सा