कंप्यूटर और कैमरे से
द्वंद्व के बाद अब टीवी को भी टक्कर दे रहा है मोबाइल। मोबाइल टीवी का यह
काॅन्सेप्ट भारत सहित विश्व भर में लोकप्रियता बटोर रहा है। परंतु क्या
इसमें इतना दम है कि टीवी की जगह ले सके?
मोबाइल टीवी पर
लेख लिखने से पहले आॅफिस में इस विषय पर साधारण चर्चा हो रही थी कि टीवी की
शुरुआत कैसे हुई और आज क्या चल रहा है। इसी बीच मैंने कहा कि पहले घर में
एक टीवी होता था और पूरा परिवार एक साथ बैठकर देखता था। पास बैठे मुकेश
सिंह चैहान ने मेरी बात झट से काटते हुए कहा- ‘क्या बात कर रहे हो सर! पूरे
गांव में एक टीवी होता था और सारा गांव देखता था।’
‘मेरा गांव उत्तर प्रदेश में पड़ता है और गांव में अच्छी आबादी है। उस पूरे गांव में सिर्फ तीन ही टीवी थे। एक चैहन के घर, एक प्रिंसिपल के घर और तीसरा एक बनिए के यहां। पूरा गांव इन्हीं के घरों में टीवी देखने जाया करता था।’
आॅफिस में पुरानी बातें जब भी होती हैं हमारे आॅफिस के अनिल जी की भागीदारी इसमें अनिवार्य है। अन्यथा यह चर्चा समझिए कि अधूरी है। संयोग से वे कुछ ही दूरी पर बैठे हमारी बातें सुन रहे थे और उन्हें खुद से आभास हो गया था कि उनके बोलने की बारी अब आ गई है। अपनी अनुभवी सलाह उन्होंने हमें दे डाली। अनिल जी कहते हैं, ‘सर, उस समय आज की तरह घर में एक-एक और दो-दो बच्चे नहीं हुआ करते थे। उस वक्त तो घरों में चार-चार और पांच-पांच बच्चे होते थे। ऐसे में भीड़ तो पहले से होती थी ऊपर से बाहर से भी लोग देखने आते थे। इसलिए जिनके घरों में टीवी हुआ करता था वे सबको अंदर आने भी नहीं देते थे। जिनसे अच्छी खासी दोस्ती है सिर्फ वे ही टीवी देख सकते थे।’
अब तक मैं सोच चुका था कि मेरे इस लेख की शुरुआत इससे अच्छी हो ही नहीं सकती और मैंने बस लिखना शुरू कर दिया।
अनिल जी और मुकेश चैहान की बातें सुनकर मैं भी थोड़ा मुस्करा रहा था जैसा कि आप महसूस कर रहे हैं। लेकिन यह भी जान रहा था कि सच्चाई यही है। टीवी मनोरंजन और सूचना का प्रमुख साध्न है और शुरुआत में घर-परिवार, दोस्त, यार और यहां तक कि पूरा गली-मुहल्ला एक साथ बैठकर टीवी देखता था। परंतु जैसे-जैसे टीवी का विकास होता गया वैसे-वैसे लोगों की सोच में अंतर आता गया।
गौर करेंगे तो पाएंगे कि टीवी तकनीक और रुचि में हर दस साल में बदलाव हुआ है। अस्सी के दशक में लोग भीड़ में बैठकर टीवी देखते थे। क्योंकि उस वक्त सिर्फ दूरदर्शन के चैनल होते थे और घरों में टीवी की संख्या बेहद कम होती थी।
नब्बे के दशक में निजी चैनल्स की शुरुआत हुई और टीवी तकनीक सस्ती हुई। अब घर-घर टीवी हो गया। लोग परिवार के साथ टीवी देखना पसंद करते लगेे। दस वर्ष बाद केबल टीवी में चैनलों की बाढ़ सी आ गई। दो हजार का दशक आते-आते लोग अब अपनी-अपनी रुचि के अनुसार चैनल देखना पसंद करने लगे। किसी को न्यूज चैनल पसंद है तो किसी को सास-बहू की कहानियां। इस तरह कोई स्पोट्र्स चैनल देखना चाहता है तो कोई डिस्कवरी। लोगों की इस सोच ने एक बार फिर से टीवी तकनीक को बदलने के लिए मजबूर कर दिया और यहां से शुरुआत हुई मोबाइल टीवी की। उस वक्त मोबाइल टीवी के लिए कुछ छोटी-मोटी तकनीक आई लेकिन आज दस साल बाद मोबाइल टीवी सेवा बड़े पैमाने पर पेश की जा रही है।
हालांकि बहुत से घर ऐसे हैं जहां हर कमरे में टीवी लगा हुआ है। परंतु वह एक जगह टंगे होते हैैं। लोगों को चाहिए ऐसा टीवी जिसे वह हर वक्त अपने साथ रख सकें। वहीं अपनी रुचि के अनुसार जो जी चाहे उसे देख सकें। मोबाइल टीवी में ये सारे गुण हैं।
‘मेरा गांव उत्तर प्रदेश में पड़ता है और गांव में अच्छी आबादी है। उस पूरे गांव में सिर्फ तीन ही टीवी थे। एक चैहन के घर, एक प्रिंसिपल के घर और तीसरा एक बनिए के यहां। पूरा गांव इन्हीं के घरों में टीवी देखने जाया करता था।’
आॅफिस में पुरानी बातें जब भी होती हैं हमारे आॅफिस के अनिल जी की भागीदारी इसमें अनिवार्य है। अन्यथा यह चर्चा समझिए कि अधूरी है। संयोग से वे कुछ ही दूरी पर बैठे हमारी बातें सुन रहे थे और उन्हें खुद से आभास हो गया था कि उनके बोलने की बारी अब आ गई है। अपनी अनुभवी सलाह उन्होंने हमें दे डाली। अनिल जी कहते हैं, ‘सर, उस समय आज की तरह घर में एक-एक और दो-दो बच्चे नहीं हुआ करते थे। उस वक्त तो घरों में चार-चार और पांच-पांच बच्चे होते थे। ऐसे में भीड़ तो पहले से होती थी ऊपर से बाहर से भी लोग देखने आते थे। इसलिए जिनके घरों में टीवी हुआ करता था वे सबको अंदर आने भी नहीं देते थे। जिनसे अच्छी खासी दोस्ती है सिर्फ वे ही टीवी देख सकते थे।’
अब तक मैं सोच चुका था कि मेरे इस लेख की शुरुआत इससे अच्छी हो ही नहीं सकती और मैंने बस लिखना शुरू कर दिया।
अनिल जी और मुकेश चैहान की बातें सुनकर मैं भी थोड़ा मुस्करा रहा था जैसा कि आप महसूस कर रहे हैं। लेकिन यह भी जान रहा था कि सच्चाई यही है। टीवी मनोरंजन और सूचना का प्रमुख साध्न है और शुरुआत में घर-परिवार, दोस्त, यार और यहां तक कि पूरा गली-मुहल्ला एक साथ बैठकर टीवी देखता था। परंतु जैसे-जैसे टीवी का विकास होता गया वैसे-वैसे लोगों की सोच में अंतर आता गया।
गौर करेंगे तो पाएंगे कि टीवी तकनीक और रुचि में हर दस साल में बदलाव हुआ है। अस्सी के दशक में लोग भीड़ में बैठकर टीवी देखते थे। क्योंकि उस वक्त सिर्फ दूरदर्शन के चैनल होते थे और घरों में टीवी की संख्या बेहद कम होती थी।
नब्बे के दशक में निजी चैनल्स की शुरुआत हुई और टीवी तकनीक सस्ती हुई। अब घर-घर टीवी हो गया। लोग परिवार के साथ टीवी देखना पसंद करते लगेे। दस वर्ष बाद केबल टीवी में चैनलों की बाढ़ सी आ गई। दो हजार का दशक आते-आते लोग अब अपनी-अपनी रुचि के अनुसार चैनल देखना पसंद करने लगे। किसी को न्यूज चैनल पसंद है तो किसी को सास-बहू की कहानियां। इस तरह कोई स्पोट्र्स चैनल देखना चाहता है तो कोई डिस्कवरी। लोगों की इस सोच ने एक बार फिर से टीवी तकनीक को बदलने के लिए मजबूर कर दिया और यहां से शुरुआत हुई मोबाइल टीवी की। उस वक्त मोबाइल टीवी के लिए कुछ छोटी-मोटी तकनीक आई लेकिन आज दस साल बाद मोबाइल टीवी सेवा बड़े पैमाने पर पेश की जा रही है।
हालांकि बहुत से घर ऐसे हैं जहां हर कमरे में टीवी लगा हुआ है। परंतु वह एक जगह टंगे होते हैैं। लोगों को चाहिए ऐसा टीवी जिसे वह हर वक्त अपने साथ रख सकें। वहीं अपनी रुचि के अनुसार जो जी चाहे उसे देख सकें। मोबाइल टीवी में ये सारे गुण हैं।
मोबाइल और टीवी
मोबाइल टीवी का काॅन्सेप्ट आए दस साल से ज्यादा हो गया और भारत में भी यह नया नहीं है। परंतु हाल के दिनों जिस तरह की कोशिशें देेखने को मिली हैं उनसे लगता है कि मोबाइल टीवी का दौर अब आ गया है। विश्व की तुलना में भारत में मोबाइल टीवी की प्रगति धीमी रही है। उसका कारण है उदासीन सरकारी रवैया और तेज नेटवर्क की अनुपलब्ध्ता।
वर्ष 2006 में प्रसार भारती ने मोबाइल टीवी सेवा की शुरुआत की थी। डीवीबीएच (डिजिटल वीडियो ब्राॅडकास्ट हैंडहेल्ड) तकनीक आधारित यह सेवा भारत में मोबाइल टीवी की पहली कोशिश थी। सेवा शुरुआत के समय मोबाइल टीवी भारत के लिए तो मात्रा एक कल्पना भर ही था, लेकिन इस कोशिश के बाद इसमें प्रगति देखी गई और विभिन्न नेटवर्क आॅपरेटरों ने इस दिशा में प्रयास तेज कर दिए।
वहीं बीच में कई मोबाइल में एनालाॅग टीवी को भी पेश किया गया था। एनालाॅग टीवी में सिर्फ दूरदर्शन के ही कुछ चैनल्स मुफ्त में उपलब्ध थे। इस टीवी की खासियत थी कि इसमें टीवी चलाने के लिए आपको किसी तरह कोई डाटा सेवा या इंटरनेट की जरूरत नहीं होती थी। परंतु चैनल्स और कंटेंट की कमी की वजह से यह तकनीक भी बहुत कामयाब नहीं हो सकी।
प्रसार भारती द्वारा मोबाइल टीवी की शुरुआत के कुछ माह उपरांत ही एमटीएनएल ने मोबाइल टीवी लाॅन्च किया। हालांकि जहां तक लाइव टीवी की बात है तो डीवीबीएच तो लाइव था लेकिन एमटीएनएल की मोबाइल टीवी में सेवाएं लाइव नहीं थीं। वर्ष 2008 में कंपनी ने लाइव टीवी सेवा भी शुरू की थी। इसके तहत मासिक शुल्क आधार पर कई चैनल्स मोबाइल पर लाइव देखे जा सकते थे। 2जी नेटवर्क पर यह सेवा थोड़ी धीमी जरूर थी परंतु एमटीएनएल द्वारा इस कमी को 3जी नेटवर्क लाॅन्च कर पूरा कर दिया।
एमटीएनएल की 3जी सेवा से पहले भी मोबाइल टीवी के लिए आईसी और अपाल्या सहित कुछ कंपनियां थीं जो एप्लिकेशन के माध्यम से मोबाइल पर टीवी सेवा प्रदान करती थीं। वहीं आॅपरेटर्स भी टीवी सीरियल के कुछ भाग को मोबाइल पर उपलब्ध कराते थे लेकिन धीमी गति की 2जी नेटवर्क की वजह से ये सेवाएं बहुत लोकप्रिय नहीं हो सकीं। परंतु जैसे ही 3जी ने दस्तक दी मोबाइल टीवी सेवा अपने पूरे रंग में आ गई और इसका तेजी से विकास होने लगा।
तो अब टीवी की जगह होगा मोबाइल
फिलहाल तो यह कहना गलत होगा कि टीवी की जगह मोबाइल होगा लेकिन जिस तरह से सेवाएं आ रही हैं और मोबाइल टीवी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है उसे देखकर हम इससे बेहतर उम्मीद तो कर ही सकते हैं। मोबाइल टीवी के बारे में बताते हुए चीफ कमर्शियल आॅफिसर विक्रम मेहरा कहते हैं, ‘हमने अध्ययन किया है टाटा स्काई के ज्यादातर उपभोक्ता काफी व्यस्त होते हैं। वे ज्यादातर समय घर से बाहर होते हैं या फिर सफर में होते हैं। घर पर बैठकर अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को टीवी पर देखने का उनके पास समय नहीं है। टाटा स्काई के 60 फीसदी उपभोक्ता ऐसे हैं जो आॅफिस या घर में अपने स्मार्टफोन या टैबलेट पर इंटरनेट के माध्यम से वीडियो देखते हैं। ऐसे लोगों की भी संख्या बहुत बड़ी है जो सफर या आॅफिस से घर आने-जाने के दौरान स्मार्टफोन या टैबलेट पर टीवी देखते हैं।’
मोबाइल टीवी का काॅन्सेप्ट आए दस साल से ज्यादा हो गया और भारत में भी यह नया नहीं है। परंतु हाल के दिनों जिस तरह की कोशिशें देेखने को मिली हैं उनसे लगता है कि मोबाइल टीवी का दौर अब आ गया है। विश्व की तुलना में भारत में मोबाइल टीवी की प्रगति धीमी रही है। उसका कारण है उदासीन सरकारी रवैया और तेज नेटवर्क की अनुपलब्ध्ता।
वर्ष 2006 में प्रसार भारती ने मोबाइल टीवी सेवा की शुरुआत की थी। डीवीबीएच (डिजिटल वीडियो ब्राॅडकास्ट हैंडहेल्ड) तकनीक आधारित यह सेवा भारत में मोबाइल टीवी की पहली कोशिश थी। सेवा शुरुआत के समय मोबाइल टीवी भारत के लिए तो मात्रा एक कल्पना भर ही था, लेकिन इस कोशिश के बाद इसमें प्रगति देखी गई और विभिन्न नेटवर्क आॅपरेटरों ने इस दिशा में प्रयास तेज कर दिए।
वहीं बीच में कई मोबाइल में एनालाॅग टीवी को भी पेश किया गया था। एनालाॅग टीवी में सिर्फ दूरदर्शन के ही कुछ चैनल्स मुफ्त में उपलब्ध थे। इस टीवी की खासियत थी कि इसमें टीवी चलाने के लिए आपको किसी तरह कोई डाटा सेवा या इंटरनेट की जरूरत नहीं होती थी। परंतु चैनल्स और कंटेंट की कमी की वजह से यह तकनीक भी बहुत कामयाब नहीं हो सकी।
प्रसार भारती द्वारा मोबाइल टीवी की शुरुआत के कुछ माह उपरांत ही एमटीएनएल ने मोबाइल टीवी लाॅन्च किया। हालांकि जहां तक लाइव टीवी की बात है तो डीवीबीएच तो लाइव था लेकिन एमटीएनएल की मोबाइल टीवी में सेवाएं लाइव नहीं थीं। वर्ष 2008 में कंपनी ने लाइव टीवी सेवा भी शुरू की थी। इसके तहत मासिक शुल्क आधार पर कई चैनल्स मोबाइल पर लाइव देखे जा सकते थे। 2जी नेटवर्क पर यह सेवा थोड़ी धीमी जरूर थी परंतु एमटीएनएल द्वारा इस कमी को 3जी नेटवर्क लाॅन्च कर पूरा कर दिया।
एमटीएनएल की 3जी सेवा से पहले भी मोबाइल टीवी के लिए आईसी और अपाल्या सहित कुछ कंपनियां थीं जो एप्लिकेशन के माध्यम से मोबाइल पर टीवी सेवा प्रदान करती थीं। वहीं आॅपरेटर्स भी टीवी सीरियल के कुछ भाग को मोबाइल पर उपलब्ध कराते थे लेकिन धीमी गति की 2जी नेटवर्क की वजह से ये सेवाएं बहुत लोकप्रिय नहीं हो सकीं। परंतु जैसे ही 3जी ने दस्तक दी मोबाइल टीवी सेवा अपने पूरे रंग में आ गई और इसका तेजी से विकास होने लगा।
तो अब टीवी की जगह होगा मोबाइल
फिलहाल तो यह कहना गलत होगा कि टीवी की जगह मोबाइल होगा लेकिन जिस तरह से सेवाएं आ रही हैं और मोबाइल टीवी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है उसे देखकर हम इससे बेहतर उम्मीद तो कर ही सकते हैं। मोबाइल टीवी के बारे में बताते हुए चीफ कमर्शियल आॅफिसर विक्रम मेहरा कहते हैं, ‘हमने अध्ययन किया है टाटा स्काई के ज्यादातर उपभोक्ता काफी व्यस्त होते हैं। वे ज्यादातर समय घर से बाहर होते हैं या फिर सफर में होते हैं। घर पर बैठकर अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को टीवी पर देखने का उनके पास समय नहीं है। टाटा स्काई के 60 फीसदी उपभोक्ता ऐसे हैं जो आॅफिस या घर में अपने स्मार्टफोन या टैबलेट पर इंटरनेट के माध्यम से वीडियो देखते हैं। ऐसे लोगों की भी संख्या बहुत बड़ी है जो सफर या आॅफिस से घर आने-जाने के दौरान स्मार्टफोन या टैबलेट पर टीवी देखते हैं।’
स्मार्टफोन
और टैबलेट के आने से लैपटाॅप और कंप्यूटर के विक्रय पर असर हुआ है। वहीं
प्वाइंट एंड शूट कैमरे के विक्रय में भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिली
है। इन दोनों दशा में आप देखेंगे कि उपभोक्ताओं का काम करने का अनुभव वही
रहा है लेकिन मोबाइल डिवाइस ने उन्हें एक सस्ता और बेहतर माध्यम दिया है।
लोग आसानी से फोटोग्राफी कर सकते हैं। फोन पर इंटरनेट सेवाओं का लाभ ले
सकते हैं। अब टीवी के सामने भी यही चुनौती है मोबाइल के माध्यम से
उपभोक्ताओं को सस्ता और बेहतर टीवी कंटेंट फोन पर ही उपलब्ध हो रहा है। ऐसे
में टीवी के सामने चुनौती तो है ही कि कैसे मोबाइल कंटेंट की बराबरी कर
सके या उससे आगे निकल सके।
क्यों खास है मोबाइल टीवी
कुछ साल पहले तक हर किसी के लिए अलग टीवी कल्पना नहीं की जा सकती थी। घर में एक जगह होती थी जहां टीवी लगा होता था और पूरा परिवार उसे ही देखता था। लेकिन समय के अनुसार कंटेंट और लोगों के व्यवहार में बदलाव हुआ और मोबाइल टीवी का जन्म हुआ। अब आपको किसी दूसरे की इच्छा के अनुसार टीवी देखने की जरूरत नहीं है बल्कि हर कोई अपनी इच्छा के अनुसार अपने स्मार्टफोन पर अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को देख सकता है। स्मार्टफोन के हर प्लेटपफाॅर्म पर आज टीवी उपलब्ध है। तेज इंटरनेट और हाई डेफिनेशन स्क्रीन रेजल्यूशन जैसे फीचर ने मोबाइल टीवी को और खास बना दिया है। वहीं आपने गौर किया होगा कि पहले फोन का स्क्रीन 2.0 इंच और 2.4 इंच तक की होती थी जबकि आज औसतन 5.0 इंच स्क्रीन वाले फोन उपलब्ध हैं। अगर आप इससे भी बडे़े डिवाइस में टीवी देखना चाहते हैं तो टैबलेट 7 से 10 इंच तक के टैबलेट भी उपलब्ध हैं। रही बात टीवी चैनल्स की तो आज टीवी की तरह यहां भी चैनल्स की भरमार है। नेक्सजी टीवी, कलर्स, सोनी मिक्स, एयरटेल टीवी, आइडिया लाइव टीवी और वोडाफोन टीवी सहित मोबाइल टीवी एप्लिकेशन भरी पड़ी हैं और इसमें इजाफा ही हो रहा है।
वहीं मोबाइल टीवी में एक बात और कही जा सकती है कि केबल टीवी में जहां वन वे कम्यूनिकेशन होता है वहीं मोबाइल टीवी में आपको कई नए फीचर मिलेंगे। टीवी देखने के क्रम में आप प्रतिक्रिया नहीं दे सकते और यदि देते भी हैं तो आपको अलग से एसएमएस, काॅल, ईमेल या पत्र भेजना होता है। जबकि मोबाइल टीवी में आप तत्काल अपनी प्रतिक्रिया लिख सकते हैं। इतना ही नहीं, आप फास्टफाॅरवर्ड और रिवाइंड कर देख सकते हैं।
टीवी में एक निश्चित समय पर ही कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं और यदि आप नहीं देख सके तो लंबा इंतजार करना होता है। कल देगा या नहीं। जबकि मोबाइल टीवी का सबसे बड़ा फायदा यही है। आप अपने पसंदीदा कार्यक्रम को जब जी चाहे देख सकते हैं। इसमें केबल और सेट टाॅप बाॅक्स का झंझट नहीं होता है। ऐसे में आप रास्ते में हैं, आॅफिस में या घर में जब जी चाहा मोबाइल टीवी आॅन कर कार्यक्रम देख सकते हैं।
टीवी देखने के दौरान एक चीज बेहद ही बुरी लगती है और यह कि हर दस मिनट पर बे्रक। विज्ञापनों की वजह से सारा मजा किरकिरा हो जाता है। परंतु मोबाइल टीवी में इस समस्या का भी समाधन है। आप चाहें तो विज्ञापनों को स्कीप कर हटा सकते हैं। विज्ञापन से बचने के लिए कुछ एप्लिकेशन निर्माताओं ने कंटेंट का प्रीमियम माॅडल लाॅन्च किया है जो बिना विज्ञापन का प्रसारित होता है। इस बारे में प्रकाश रामचंदानी, चीफ कंटेंट आॅफिसर, स्पूल डाॅट काॅम, कहते हैं, ‘विज्ञापन से बचने के लिए हमने तीन तरह के कंटेंट का निर्माण किया है। सपोर्ट माॅडल, सब्सक्राइब माॅडल और पे फाॅर व्यू माॅडल। यदि उपभोक्ता कंटेंट के बदले कोई शुल्क नहीं चुकाना चाहता तो सपोर्ट माॅडल को देख सकता है। जहां कुछ अंतराल के दौरान विज्ञापन भी प्रसारित होते हैं। परंतु पे फाॅर व्यू में उपभोक्ता बिना विज्ञापन के कंटेंट देख सकता है।’
क्यों खास है मोबाइल टीवी
कुछ साल पहले तक हर किसी के लिए अलग टीवी कल्पना नहीं की जा सकती थी। घर में एक जगह होती थी जहां टीवी लगा होता था और पूरा परिवार उसे ही देखता था। लेकिन समय के अनुसार कंटेंट और लोगों के व्यवहार में बदलाव हुआ और मोबाइल टीवी का जन्म हुआ। अब आपको किसी दूसरे की इच्छा के अनुसार टीवी देखने की जरूरत नहीं है बल्कि हर कोई अपनी इच्छा के अनुसार अपने स्मार्टफोन पर अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को देख सकता है। स्मार्टफोन के हर प्लेटपफाॅर्म पर आज टीवी उपलब्ध है। तेज इंटरनेट और हाई डेफिनेशन स्क्रीन रेजल्यूशन जैसे फीचर ने मोबाइल टीवी को और खास बना दिया है। वहीं आपने गौर किया होगा कि पहले फोन का स्क्रीन 2.0 इंच और 2.4 इंच तक की होती थी जबकि आज औसतन 5.0 इंच स्क्रीन वाले फोन उपलब्ध हैं। अगर आप इससे भी बडे़े डिवाइस में टीवी देखना चाहते हैं तो टैबलेट 7 से 10 इंच तक के टैबलेट भी उपलब्ध हैं। रही बात टीवी चैनल्स की तो आज टीवी की तरह यहां भी चैनल्स की भरमार है। नेक्सजी टीवी, कलर्स, सोनी मिक्स, एयरटेल टीवी, आइडिया लाइव टीवी और वोडाफोन टीवी सहित मोबाइल टीवी एप्लिकेशन भरी पड़ी हैं और इसमें इजाफा ही हो रहा है।
वहीं मोबाइल टीवी में एक बात और कही जा सकती है कि केबल टीवी में जहां वन वे कम्यूनिकेशन होता है वहीं मोबाइल टीवी में आपको कई नए फीचर मिलेंगे। टीवी देखने के क्रम में आप प्रतिक्रिया नहीं दे सकते और यदि देते भी हैं तो आपको अलग से एसएमएस, काॅल, ईमेल या पत्र भेजना होता है। जबकि मोबाइल टीवी में आप तत्काल अपनी प्रतिक्रिया लिख सकते हैं। इतना ही नहीं, आप फास्टफाॅरवर्ड और रिवाइंड कर देख सकते हैं।
टीवी में एक निश्चित समय पर ही कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं और यदि आप नहीं देख सके तो लंबा इंतजार करना होता है। कल देगा या नहीं। जबकि मोबाइल टीवी का सबसे बड़ा फायदा यही है। आप अपने पसंदीदा कार्यक्रम को जब जी चाहे देख सकते हैं। इसमें केबल और सेट टाॅप बाॅक्स का झंझट नहीं होता है। ऐसे में आप रास्ते में हैं, आॅफिस में या घर में जब जी चाहा मोबाइल टीवी आॅन कर कार्यक्रम देख सकते हैं।
टीवी देखने के दौरान एक चीज बेहद ही बुरी लगती है और यह कि हर दस मिनट पर बे्रक। विज्ञापनों की वजह से सारा मजा किरकिरा हो जाता है। परंतु मोबाइल टीवी में इस समस्या का भी समाधन है। आप चाहें तो विज्ञापनों को स्कीप कर हटा सकते हैं। विज्ञापन से बचने के लिए कुछ एप्लिकेशन निर्माताओं ने कंटेंट का प्रीमियम माॅडल लाॅन्च किया है जो बिना विज्ञापन का प्रसारित होता है। इस बारे में प्रकाश रामचंदानी, चीफ कंटेंट आॅफिसर, स्पूल डाॅट काॅम, कहते हैं, ‘विज्ञापन से बचने के लिए हमने तीन तरह के कंटेंट का निर्माण किया है। सपोर्ट माॅडल, सब्सक्राइब माॅडल और पे फाॅर व्यू माॅडल। यदि उपभोक्ता कंटेंट के बदले कोई शुल्क नहीं चुकाना चाहता तो सपोर्ट माॅडल को देख सकता है। जहां कुछ अंतराल के दौरान विज्ञापन भी प्रसारित होते हैं। परंतु पे फाॅर व्यू में उपभोक्ता बिना विज्ञापन के कंटेंट देख सकता है।’
फिल्मी खुमार, क्रिकेट का भी चढ़ा बुखार
मोबाइल टीवी सेवा की जब शुरुआत हुई तो उस वक्त सिर्फ छोटे-छोटे टीवी सीरियल और गाने होते थे। इसके अलावा फिल्मों के ट्रेलर और क्रिकेट हाईलाइट होते थे। इन कंटेंट की अवधि 3-4 मिनट तक होती थी। एक तो हम लोगों का मानना था कि मोबाइल पर लंबा वीडियो देखना लोग पसंद नहीं करेंगे। वहीं दूसरी ओर भारी भरकम वीडियो अपलोड और डाउनलोड में भी समस्या थी। क्योंकि हाईस्पीड नेटवर्क उपलब्ध नहीं था। जबकि आज ट्रेंड पूरी तरह बदल गया है। लोग भारी भरकम वीडियो और क्रिकेट मैच तक देखना पसंद करते हैं।
मोबाइल टीवी की जब बात होती थी तो हमें यही लगता रहा था कि 2-3 मिनट के छोटे वीडियो जैसा कि यूट्यब पर लोग देखा करते हैं। परंतु जानकर बहुत हैरानी हुई कि लोग अब फिल्म देखने में भी घंटों बिता रहे हैं। जीडी सिंह कहते हैं, ‘दो साल पहले हमलोग खुद इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि मूवी लोग पसंद करेंगे या नहीं। हमने फिल्म के प्रोड्यूसर के साथ मिलकर 20 मिनट की 20 फिल्में बनाईं। हमें बहुत ही आश्चर्य हुआ कि लोग मोबाइल और टैबलेट पर उन फिल्में को देख रहे थे। आज हमारे कुल ट्रैफिक का 10-12 प्रतिशत फिल्म से आता है।’
थोड़ी सी है परेशानी
भारत में मोबाइल पर टीवी की शुरुआत भले ही धीमी हुई हो लेकिन अब तेजी आ गई है। लोग अपनी पसंद के कार्यक्रम देखना चाहते हैं। परंतु इस सेवा में अब भी थोड़ी समस्या है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि एप्लिकेशन के माध्यम से दिखाए गए कंटेंट लाइव नहीं होते हैं। रिकाॅर्डेड होते हैं। अर्थात आप जो देख रहे हैं वह पुराना है।
वहीं दूसरी समस्या है बैंडविथ की। आप इंटरनेट के माध्यम से ही इस सेवा का लाभ ले सकते हैं लेकिन भारत में अब भी 3जी सेवा का उपयोग लगभग 4 फीसदी लोग ही कर रहे हैं और 2जी नेटवर्क पर यह बेहतर तरीके से कार्य ही नहीं करता। 3जी सेवा आज भी आम इन्सान के लिए महंगी है। हालांकि मोबाइल पर प्रसारित होने वाले वीडियो काफी कंप्रेस होते हैं बावजूद इसके वीडियो के दौरान सबसे ज्यादा डाटा का खपत होती है। ऐसे में यदि आपने 3जी का कोई छोटा-मोटा प्लान ले रखा है तो मोबाइल टीवी का पूरा लुत्फ नहीं उठा सकते।
मोबाइल में हाईडेफिनेशन स्क्रीन तो उपलब्ध है लेकिन हाईडेफिनेशन वीडियो बहुत कम उपलब्ध् हैं। अन्य वीडियो की क्वालिटी वह नहीं होती जो टीवी में आप देख रहे होते हैं। जिस विज्ञापन से बचने के लिए टीवी से हटकर मोबाइल पर लोग कंटेंट देखना चाहते हैं वह विज्ञापन अब मोबाइल पर भी उपलब्ध हो चुका है।
लेकिन सुनहरा है भविष्य
मोबाइल टीवी मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनकर उभारा है। सबसे अच्छी बात है कि इसमें समय का कोई बंधन नहीं और आप जब जो चाहें देख सकते हैं। बावजूद इसके कहा जा सकता है कि इसमें अब भी काफी विकास की जरूरत है। कंटेंट की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन टीवी के मुकाबले इसमें बहुत कम है। वहीं लाइव कंटेंट की कमी है। हां, अच्छी बात यह कही जा सकती है कि कार्यक्रम छूटने का डर खत्म हो गया है। जीडी सिंह कहते हैं, ‘हाल में जारी कुछ रिपोर्ट के अनुुसार 2020 तक टीवी के मुकाबले 70 फीसदी से भी ज्यादा कंटेंट मोबाइल सहित अन्य प्रकार के डिवायस जैसे टैबलेट, लैपटाॅप और नोटबुक इत्यादि पर देखे जाएंगे। हालांकि मुख्य टीवी की जो बात हम कर रहे हैं वह कभी खत्म नहीं होगा और पिछले दस सालों में जिस तरह का विकास देखा गया है वैसा ही चलता रहेगा।’
जिस तरह मोबाइल टीवी लोकप्रिय हो रहा है। भविष्य को लेकर भविष्यवाणी तो आप भी कर सकते हैं। टीवी देखने के क्रम में अक्सर वहां एक मैसेज डिसप्ले होता है कि इस चैनल का एप्लिकेशन आप अपने एंडराॅयड, विंडोज और आईओएस फोन पर डाउनलोड कर सकते हैं। आज हर चैनल, हरेक टीवी सीरियल, मैच और फिल्म के मोबाइल एप्लिकेशन बनाए जा रहे हैं। सोनी मिक्स, कलर्स, एनडीटीवी और जी स्टार सहित लगभग हर चैनल का एप्लिकेशन उपलब्ध है। आप चाहें तो इन एप्लिकेशन को डाउनलोड कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ एप्लिकेशन हैं जिनमें सभी तरह के चैनल मिलेंगे। यह आपके घर के केबल टीवी के समान कार्य करेगा। नेक्सटीवी, अपाल्या, एयरटेल पाॅकेट टीवी, आइडिया टीवी और जेंगा टीवी इत्यादि कुछ ऐसे ही उदाहरण है। टाटा स्काई और डिशटीवी का भी अपना एप्लिकेशन उपलब्ध है। इन एप्लिकेशन के माध्यम से मोबाइल पर न सिर्फ टीवी चैनल्स देख सकते हैं बल्कि इसके अलावा भी कई अन्य कंटेंट उपलब्ध होते हैं। जैसे- हाईलाइट्स, ट्रेलर, रिकैप, शाॅर्ट मूवी और एक्शन सीन इत्यादि।
आपने आईपीटीवी का जिक्र सुना होगा। इंटरनेट के माध्यम से यह सेवा मुहैया कराई जाती है। ब्राॅड बैंड इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से आप घरों में इस सेवा का लाभ ले सकते हैं। इंटरनेट आधरित होने की वजह से साधरण केबल की अपेक्षा इसमें कई फीचर जुड़ जाते हैं। सापफ व स्पष्ट पिक्चर के अलावा आप कार्यक्रम रिकाॅर्ड कर सकते हैं, आॅन डिमांड मूवी और मल्टीपल गेमिंग भी इस सेवा की खासियत है। मोबाइल टीवी के लिए भी यह बेहतर तकनीक है। 2जी इंटरनेट पर आईपीटीवी सेवा नहीं दी जा सकती थी लेकिन पर हाईस्पीड इंटरनेट सेवा का आगाज हो चुका है। 3जी सेवा आ चुकी है और 4जी भी दस्तक देने वाला है। ऐसे में आने वाले दिनों में आप आईपीटीवी सेवा मोबाइल पर भी पा सकते हैं।
मोबाइल टीवी की कुछ खास तकनीक
मोबाइल टीवी सेवा की जब शुरुआत हुई तो उस वक्त सिर्फ छोटे-छोटे टीवी सीरियल और गाने होते थे। इसके अलावा फिल्मों के ट्रेलर और क्रिकेट हाईलाइट होते थे। इन कंटेंट की अवधि 3-4 मिनट तक होती थी। एक तो हम लोगों का मानना था कि मोबाइल पर लंबा वीडियो देखना लोग पसंद नहीं करेंगे। वहीं दूसरी ओर भारी भरकम वीडियो अपलोड और डाउनलोड में भी समस्या थी। क्योंकि हाईस्पीड नेटवर्क उपलब्ध नहीं था। जबकि आज ट्रेंड पूरी तरह बदल गया है। लोग भारी भरकम वीडियो और क्रिकेट मैच तक देखना पसंद करते हैं।
मोबाइल टीवी की जब बात होती थी तो हमें यही लगता रहा था कि 2-3 मिनट के छोटे वीडियो जैसा कि यूट्यब पर लोग देखा करते हैं। परंतु जानकर बहुत हैरानी हुई कि लोग अब फिल्म देखने में भी घंटों बिता रहे हैं। जीडी सिंह कहते हैं, ‘दो साल पहले हमलोग खुद इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि मूवी लोग पसंद करेंगे या नहीं। हमने फिल्म के प्रोड्यूसर के साथ मिलकर 20 मिनट की 20 फिल्में बनाईं। हमें बहुत ही आश्चर्य हुआ कि लोग मोबाइल और टैबलेट पर उन फिल्में को देख रहे थे। आज हमारे कुल ट्रैफिक का 10-12 प्रतिशत फिल्म से आता है।’
थोड़ी सी है परेशानी
भारत में मोबाइल पर टीवी की शुरुआत भले ही धीमी हुई हो लेकिन अब तेजी आ गई है। लोग अपनी पसंद के कार्यक्रम देखना चाहते हैं। परंतु इस सेवा में अब भी थोड़ी समस्या है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि एप्लिकेशन के माध्यम से दिखाए गए कंटेंट लाइव नहीं होते हैं। रिकाॅर्डेड होते हैं। अर्थात आप जो देख रहे हैं वह पुराना है।
वहीं दूसरी समस्या है बैंडविथ की। आप इंटरनेट के माध्यम से ही इस सेवा का लाभ ले सकते हैं लेकिन भारत में अब भी 3जी सेवा का उपयोग लगभग 4 फीसदी लोग ही कर रहे हैं और 2जी नेटवर्क पर यह बेहतर तरीके से कार्य ही नहीं करता। 3जी सेवा आज भी आम इन्सान के लिए महंगी है। हालांकि मोबाइल पर प्रसारित होने वाले वीडियो काफी कंप्रेस होते हैं बावजूद इसके वीडियो के दौरान सबसे ज्यादा डाटा का खपत होती है। ऐसे में यदि आपने 3जी का कोई छोटा-मोटा प्लान ले रखा है तो मोबाइल टीवी का पूरा लुत्फ नहीं उठा सकते।
मोबाइल में हाईडेफिनेशन स्क्रीन तो उपलब्ध है लेकिन हाईडेफिनेशन वीडियो बहुत कम उपलब्ध् हैं। अन्य वीडियो की क्वालिटी वह नहीं होती जो टीवी में आप देख रहे होते हैं। जिस विज्ञापन से बचने के लिए टीवी से हटकर मोबाइल पर लोग कंटेंट देखना चाहते हैं वह विज्ञापन अब मोबाइल पर भी उपलब्ध हो चुका है।
लेकिन सुनहरा है भविष्य
मोबाइल टीवी मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनकर उभारा है। सबसे अच्छी बात है कि इसमें समय का कोई बंधन नहीं और आप जब जो चाहें देख सकते हैं। बावजूद इसके कहा जा सकता है कि इसमें अब भी काफी विकास की जरूरत है। कंटेंट की बात तो हम कर रहे हैं लेकिन टीवी के मुकाबले इसमें बहुत कम है। वहीं लाइव कंटेंट की कमी है। हां, अच्छी बात यह कही जा सकती है कि कार्यक्रम छूटने का डर खत्म हो गया है। जीडी सिंह कहते हैं, ‘हाल में जारी कुछ रिपोर्ट के अनुुसार 2020 तक टीवी के मुकाबले 70 फीसदी से भी ज्यादा कंटेंट मोबाइल सहित अन्य प्रकार के डिवायस जैसे टैबलेट, लैपटाॅप और नोटबुक इत्यादि पर देखे जाएंगे। हालांकि मुख्य टीवी की जो बात हम कर रहे हैं वह कभी खत्म नहीं होगा और पिछले दस सालों में जिस तरह का विकास देखा गया है वैसा ही चलता रहेगा।’
जिस तरह मोबाइल टीवी लोकप्रिय हो रहा है। भविष्य को लेकर भविष्यवाणी तो आप भी कर सकते हैं। टीवी देखने के क्रम में अक्सर वहां एक मैसेज डिसप्ले होता है कि इस चैनल का एप्लिकेशन आप अपने एंडराॅयड, विंडोज और आईओएस फोन पर डाउनलोड कर सकते हैं। आज हर चैनल, हरेक टीवी सीरियल, मैच और फिल्म के मोबाइल एप्लिकेशन बनाए जा रहे हैं। सोनी मिक्स, कलर्स, एनडीटीवी और जी स्टार सहित लगभग हर चैनल का एप्लिकेशन उपलब्ध है। आप चाहें तो इन एप्लिकेशन को डाउनलोड कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ एप्लिकेशन हैं जिनमें सभी तरह के चैनल मिलेंगे। यह आपके घर के केबल टीवी के समान कार्य करेगा। नेक्सटीवी, अपाल्या, एयरटेल पाॅकेट टीवी, आइडिया टीवी और जेंगा टीवी इत्यादि कुछ ऐसे ही उदाहरण है। टाटा स्काई और डिशटीवी का भी अपना एप्लिकेशन उपलब्ध है। इन एप्लिकेशन के माध्यम से मोबाइल पर न सिर्फ टीवी चैनल्स देख सकते हैं बल्कि इसके अलावा भी कई अन्य कंटेंट उपलब्ध होते हैं। जैसे- हाईलाइट्स, ट्रेलर, रिकैप, शाॅर्ट मूवी और एक्शन सीन इत्यादि।
आपने आईपीटीवी का जिक्र सुना होगा। इंटरनेट के माध्यम से यह सेवा मुहैया कराई जाती है। ब्राॅड बैंड इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से आप घरों में इस सेवा का लाभ ले सकते हैं। इंटरनेट आधरित होने की वजह से साधरण केबल की अपेक्षा इसमें कई फीचर जुड़ जाते हैं। सापफ व स्पष्ट पिक्चर के अलावा आप कार्यक्रम रिकाॅर्ड कर सकते हैं, आॅन डिमांड मूवी और मल्टीपल गेमिंग भी इस सेवा की खासियत है। मोबाइल टीवी के लिए भी यह बेहतर तकनीक है। 2जी इंटरनेट पर आईपीटीवी सेवा नहीं दी जा सकती थी लेकिन पर हाईस्पीड इंटरनेट सेवा का आगाज हो चुका है। 3जी सेवा आ चुकी है और 4जी भी दस्तक देने वाला है। ऐसे में आने वाले दिनों में आप आईपीटीवी सेवा मोबाइल पर भी पा सकते हैं।
मोबाइल टीवी की कुछ खास तकनीक
डीवीबी-एचः- डिजिटल वीडियो ब्राॅडकास्ट हैंडहेल्ड, यह तकनीक खास कर टेरेसट्रियल मोबाइल ब्राॅडकास्ट के लिए है। इसके माध्यम से डिजिटल ट्रांसमिशन को मल्टीमीडिया के विभिन्न माध्यमों में बदलकर मोबाइल हैंडसेट पर पेश किया जाता है। वहीं इसके लिए यह भी आवश्यक है मोबाइल भी डीवीबी-एच तकनीक इनेबिल्ड हो। इसमें नेटवर्क आॅपरेटर की कोई भूमिका नहीं होती। यूरोपीय देशों में यह तकनीक बहुत ही प्रचलित है लेकिन भारत में इस क्षेत्रा में विशेष प्रगति नहीं देखी गई। प्रसार भारती द्वारा प्रायोगिक तौर पर लांच भी की गई थी परंतु अब तक दिल्ली के कुछ क्षेत्र में ही इसका लाभ लिया जा सकता है।
एनालाॅग
टीवीः- यह घर में उपलब्ध साधरण टीवी है। इस टीवी को मोबाइल पर पेश किया गया
है। इसमें नेटवर्क आॅपरेटर्स की कोई भूमिका नहीं होती बल्कि हैंडसेट ही
टीवी फीचर्स युक्त होते हैं जिसमें तहत पफोन में एनालाॅग टीवी सिग्नल
रिसीवर इनबिल्ट होता है। इसके माध्यम से आप देश के किसी भी क्षेत्र में
दूरदर्शन के फ्री टूू एयर चैनल देख सकते हैं।
ब्राॅडकास्ट मोबाइल टीवीः- मोबाइल पर यह सेवा मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से दी जाती है। इसके लिए मोबाइल में किसी खास हार्डवेयर की आवश्यकता नहीं होती बल्कि साधरण जीपीआरएस या वाई-फाई इनेबल फोन पर भी मोबाइल टीवी का लुत्पफ उठाया जा सकता है। इसके तहत मोबाइल टीवी के लिए इंटरनेट की आवश्यकता होती है। भारत में विभिन्न आॅपरेटर्स द्वारा इस सेवा को ही प्रसारित किया जा रहा है। जहां मासिक शुल्क के आधर पर चैनल्स का लाभ उठा सकते हैं। एंडराॅयड, सिंबियन, ब्लैकबेरी और आईओएस सहित एप्स स्टोर पर भी मोबाइल टीवी के लिए एप्लिकेशन उपलब्ध हैं। हालांकि 2जी नेटर्वक पर यह सेवा थोड़ी धीमी है, लेकिन 3जी और वाई-फाई के माध्यम से बेहतर सेवा का लाभ लिया जा सकता है। फिलहाल यही सेवा भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है।
आईपीटीवीः- इंटरनेट प्रोटोकाॅल टेलीविजन। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह इंटरनेट आधारित टेलीविजन सर्विस है जो बड़े शहरों में बहुत प्रचलित हो रही है। हालांकि भारत में मोबाइल पर इस सेवा की शुरुआत नहीं हुई है लेकिन भविष्य में इसे लेकर कई संभावनाएं हैं। जहां मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ता मनचाहा चैनल और आॅनडिमांड वीडियो इत्यादि आसानी से देख सकेंगे। हालांकि यह तब तक संभव नहीं है जब तक एलटीई (लाॅन्ग टर्म एवोल्यूशन) सेवा भारत में उपलब्ध न हो। इसलिए फिलहाल कहा जा सकता है कि मोबाइल आईपीटीवी के लिए आपको थोड़ा इंतजार करना होगा।
ब्राॅडकास्ट मोबाइल टीवीः- मोबाइल पर यह सेवा मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से दी जाती है। इसके लिए मोबाइल में किसी खास हार्डवेयर की आवश्यकता नहीं होती बल्कि साधरण जीपीआरएस या वाई-फाई इनेबल फोन पर भी मोबाइल टीवी का लुत्पफ उठाया जा सकता है। इसके तहत मोबाइल टीवी के लिए इंटरनेट की आवश्यकता होती है। भारत में विभिन्न आॅपरेटर्स द्वारा इस सेवा को ही प्रसारित किया जा रहा है। जहां मासिक शुल्क के आधर पर चैनल्स का लाभ उठा सकते हैं। एंडराॅयड, सिंबियन, ब्लैकबेरी और आईओएस सहित एप्स स्टोर पर भी मोबाइल टीवी के लिए एप्लिकेशन उपलब्ध हैं। हालांकि 2जी नेटर्वक पर यह सेवा थोड़ी धीमी है, लेकिन 3जी और वाई-फाई के माध्यम से बेहतर सेवा का लाभ लिया जा सकता है। फिलहाल यही सेवा भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है।
आईपीटीवीः- इंटरनेट प्रोटोकाॅल टेलीविजन। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह इंटरनेट आधारित टेलीविजन सर्विस है जो बड़े शहरों में बहुत प्रचलित हो रही है। हालांकि भारत में मोबाइल पर इस सेवा की शुरुआत नहीं हुई है लेकिन भविष्य में इसे लेकर कई संभावनाएं हैं। जहां मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ता मनचाहा चैनल और आॅनडिमांड वीडियो इत्यादि आसानी से देख सकेंगे। हालांकि यह तब तक संभव नहीं है जब तक एलटीई (लाॅन्ग टर्म एवोल्यूशन) सेवा भारत में उपलब्ध न हो। इसलिए फिलहाल कहा जा सकता है कि मोबाइल आईपीटीवी के लिए आपको थोड़ा इंतजार करना होगा।
इनके अलावा भी कुछ तकनीक हैं जिनका उपयोग मोबाइल टीवी के लिए किया जा रहा है। एटीएससी-एम/एच, टी-डीएमबी, 1 सेज, आईएसडीबी-टीएमएम, मीडिया फ्रलो, डीएमबी-टी/एच, डीएमबी-आईपी और आई-एमबी भी मोबाइल टीवी की कुछ ऐसी ही तकनीक हैं। वहीं मोबाइल टीवी के लिए सेटेलाइट आधारित भी कुछ तकनीक हैं जिनका उपयोग मोबाइल टीवी के लिए किया जाता है। जिनमें डीवीबी-एसएच, एस-डीएमबी और सीएमएमबी खास हैं।
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