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गूगल क्रोम: तेज और आसान ऑपरेटिंग


क्रोम (Google Chrome) आपरेटिंग सिस्टम (Operating System) दरअसल, ब्राउजर (Browser) आधारित आपरेटिंग सिस्टम है, जो लिनक्स (Linx) पर काम करता है। भारत क्रोम ब्राउजर के (Chrome Browser) सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है। पारंपरिक वेब ब्राउजर की तुलना में यह स्पीड और सिक्योरिटी के लिहाज से कहीं बेहतर है। ये सुविधएं भारतीय बाजार के लिए उपयुक्त हैं, क्योंकि यहां कम बैंडविड्थ पर और एक साथ जुड़े कंप्यूटरों पर काफी काम होता है। जानकारों का मानना है कि क्रोम आपरेटिंग सिस्टम नेटबुक का इस्तेमाल करने वालों के लिए बेहतर है, क्योंकि वे ज्यादातर समय आनलाइन काम करते हैं। इस श्रेणी में तकनीकी क्षेत्र से जुड़े लोग और लगातार यात्रा करने वाले प्रोफेशनल्स भी आते हैं।

क्लाउड कंप्यूटिंग का बेहतरीन नमूना

गूगल का व्रफोम आपरेरिंग सिस्टम क्लाउड कंप्यूटिंग (Cloud Computing) का बेहतरीन उदाहरण है। यह आपरेटिंग सिस्टम पोर्टेबल लैपटापों (Laptop) में उपयुक्त होता है। गूगल ने इसका ओपन सोर्स संस्करण क्रोमिओम ओएस नाम से उपलब्ध कराया है। यह कम पावर खपत और इंटरनेट एक्सेस पर केंद्रित नेटबुक की लोकप्रियता से प्रेरित है। गूगल ने क्रोम ओएस युक्त लैपटॅाप को क्रोममबुक का नाम दिया है। इसके केंद्र में एक ब्राउजर है, जो मीडिया प्लेयर, फाइल मैनेजर और अन्य एप्लिकेशंस युक्त है। यह विशेष रूप से वेब एप्लिकेशंस के साथ काम करने के लिए बनाया गया है। सामान्य डेस्कटाप एप्लिकेशंस के स्थान पर इसमें वेब एप्लिकेशंस हैं, जिनमें गूगल डाक्स नामक आफिस सुइट, पेंट प्रोग्राम, मल्टीमीडिया प्लेयर, गेम्स आदि तमाम प्रोग्राम शामिल हैं। इन एप्लिकेशंस में बनाई गई फाइलें भी क्लाउड पर ही सेव होती हैं। यह वाई-फाई नेटवर्क पर भी काम करता है। प्रिंटिंग के लिए इसमें गूगल क्लाउड प्रिंट का सहारा लिया गया है, जो कि नेटवर्क क्लाउड से जुड़े किसी डिवाइस पर प्रिंटर का ड्राइवर इनस्टॉल किए बिना प्रिंट करने की सुविध देती है।

क्रोम ओएस की कहानी
क्रोम ओएस किसने बनाया इसके बारे में पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। गूगल के एक पूर्व इंजीनियर जेफ नेल्सन ने दावा किया था कि उसने आरिजनल टेक्नोलाजी डेवलप की है, जिसका कोड नेम गूगल ओएस था। इसके सबूत के तौर पर नेल्सन ने उस पेटेंट का हवाला दिया, जिसमें गूगल ने मार्च 2009 नेटवर्क बेस्ड आपरेटिंग सिस्टम अक्रोस डिवाइस के आविष्कार के रूप में नेल्सन के नाम का जिक्र किया था। फरवरी 2013 में गूगल प्लस की एक चर्चा में यह बात सामने आई कि नेल्सन ने लिखा था कि 2007 के अंत में कई मीटिंग्स के बाद उसने और प्रोडक्ट मैनेजर ने मैनेजमेंट को क्रोम आपरेटिंग सिस्टम लान्च करने के लिए आश्वस्त कर लिया। लेकिन दूसरे गूगल एम्प्लायीज ने नेल्सन के इस दावे का खंडन किया। गूगल के क्रोम आपरेटिंग सिस्टम से जुड़े तीन मूल इंजीनियरों में से एक एंटोनी लेबर ने गूगल प्लस के फरवरी 2013 की चर्चा में लिखा है कि मैंने कभी नेल्सन के बारे नहीं सुना और वह नेल्सन लिनक्स डिस्ट्रीब्यूशन पर काम कर रहा था, नहीं कि क्रोम ओएस पर। गूगल ने 7 जुलाई, 2009 में क्रोम ओएस की घोषणा की। इसके बाद 19 नवंबर, 2009 को गूगल ने क्रोममियम ओएस परियोजना के रूप में क्रोम ओएस सोर्स कोड जारी किया। एक 19 नवंबर, 2009 सुंदर पिचाई, प्रोडक्ट मैनेजमेंट वीपी ने ब्लॉग  पर लिखा कि जिस आपरेटिंग सिस्टम पर अभी ब्राउजर काम करता है, वह उस समय बनाया गया था, जब वेब नहीं था। इसलिए आज हम एक ऐसी नई परियोजना की शुरुआत कर रहे हैं, जो गूगल क्रोम (2008 में लान्च ब्राउजर) का एक स्वाभाविक विकास है- यानी गूगल क्रोम आपरेटिंग सिस्टम। आपरेटिंग सिस्टम कैसा होना चाहिए, यह फिर से विचार करने की हमारी एक कोशिश है। गूगल के इंजीनियरिंग विभाग के डायरेक्टर लाइनस उपसन ने अपने ब्लाग में लिखा है कि उन्होंने कंप्यूटर को तेजी से चलाने के लिए गूगल क्रोम आपरेटिंग सिस्टम इस तरह तैयार किया है कि वह कंप्यूटर पर ज्यादा जगह न ले। कई बार आपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर पर काफी ज्यादा जगह खा जाते हैं। हल्का और छोटा होने की वजह से गूगल क्रोम अपना काम शुरू करने में ज्यादा वक्त नहीं लगाएगा और तेजी से इंटरनेट से भी कनेक्ट हो सकेगा।

कुछ खास जानकारी

क्रोम नोटबुक में बूटिंग प्रोसेस 3-10 सेकेंड में शुरू होती है। जिसकी वजह से वेबसाइट आसानी से लोड हो जाती है और आराम से एक्सेस की जा सकती है। इसमें सारी नई वेब  सुविधएं और एडोब फलैश मौजूद हैं।

इसमें सारे एप्लिकेशंस, सेटिंग्स, डाक्यूमेंट सब कुछ बेहद आसानी से स्टोर हो जाता है, जिसे आप कहीं भी एक्सेस कर सकते हैं।


इसकी वाई-फाई तकनीक के जरिए आप कहीं भी और कैसे भी इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा, यह 3जी में भी उपलब्ध है।


डाटा एक्सेस करते समय यह क्रोम नोटबुक वायरस के हमलों से पूरी तरह सुरक्षित रहती है, क्योंकि इसका सुरक्षा तंत्र इसके सिस्टम में मौजूद है। मतलब इसके लिए अगल से सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर की जरूरत नहीं।


गूगल क्रोम हमेशा लेटेस्ट फीचर्स से खुद को अपग्रेड करता रहता है। इसके अलावा, गेम्स से लेकर फोटो एडिटर तक ढेरों नए वेब ऐप्लिकेशंस इसमें इनबिल्ट हैं। 


क्रोम ओएस का फ्यूचर
भारत में क्रोम ओएस के शुरुआती दौर को देखते हुए नहीं लगता कि वह हाल-फिलहाल में विंडोज या मैक का स्थान ले सकती है, लेकिन वह यह सिद्ध करने के लिए प्रर्याप्त है कि वेब आपरेटिंग सिस्टम कोई कल्पना नहीं है। डेस्कटाप युग अपने समापन की ओर अग्रसर है। क्रोम ओएस का ज्यादातर कामकाज असल में वेब ब्राउजर के भीतर ही संपन्न होता है। वह गूगल की वेब आधरित सेवाओं के साथ मजबूती से जुड़ा है। क्रोमबुक फिलहाल बहुत अधिक भारतीय माहौल के अनुकूल नहीं है, क्योंकि भारत में इंटरनेट की सुलभता और गति अभी विदेश जैसी नहीं। कम गति के  कारण क्लाउड की एप्लिकेशन और फाइलों को प्रयोग करना कठिन है। 2009 में आया क्रोम ओेएस फिलहाल विशेष प्रचलित नहीं हो पाया। भविष्य में तेज गति के इंटरनेट की सुलभता और क्लाउड कंप्यूटिंग के दौर में इसका इस्तेमाल बढ़ने की उम्मीद है। क्रोम ओएस की दीर्घकालीन सफलता के अच्छे-खासे आसार हैं। गूगल ने क्रोममबुक के लिए एचपी, सैमसंग, एसर और एलजी जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी की है। एलजी ने भी हाल में क्रोमबुक को प्रदर्शित किया है।  अमेरिका में सेमसंग क्रोमबुक 3जी वर्जन में रिलीज हो चुकी है। अगर आप क्रोमबुक लेना चाहे, तो बाजार में एसर क्रोमबुक सी 720, एचपी क्रोमबुक 11, सैमसंग क्रोमबुक एक्सई उपलब्ध हैं।

क्रोम ओएस के फायदे

क्रोम ओएस की तीन प्रमुख खासियतें हैं- उसकी स्पीड, कामकाज की सरलता और सिक्योरिटी। इन पर वह खरा उतरता है, जो स्वाभाविक भी है। देखा जाए तो नेटबुक में कोई भारी-भरकम आपरेटिंग सिस्टम मौजूद नहीं होता है, क्योंकि सारा काम इंटरनेट के जरिए होता है, इसलिए इसकी स्पीड काफी अच्छी होती है। जहां तक सुरक्षा का मामला है तो कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर बहुत कम होते हैं, इसलिए सिक्योरिटी और वायरस से सम्बन्धी खतरे भी कम ही होते हैं। दरअसल, आपकी फाइलें भी कंप्यूटर में नहीं बल्कि वेब पर सेव होती हैं, इसलिए गूगल के एंटी-वायरस सिस्टम की वजह से वे सुरक्षित होते हैं। हालांकि कंप्यूटर इन खतरों से पूरी तरह मुक्त तो नहीं है, लेकिन विंडोज और मैक की तुलना में वह सुरक्षित है। वेब आधरित आपरेटिंग सिस्टम के साथ कई फायदे हैं। मसलन, इसे इंस्टाल करने की जरूरत नहीं है और न ही अपडेट करने की। वह तो वेब पर चलता है, जिसके अपडेशन का काम खुद ब खुद हो जाता है। सिस्टम क्रैश होने पर फाइलें खोने का डर नहीं है और न ही वायरस, स्पाईवेयर आदि की परेशानी। वैसे, गूगल ने ऑफिस सॉफ्टवेयर के वेब आधारित विकल्प के रूप में गूगल डाक्स नामक सेवा जारी की थी, जिसके तहत आप इंटरनेट पर ही वर्ड, एक्सेल और पावरप्वाइंट जैसी फाइलें बना और सहेज सकते हैं। क्रोम यह काम आसान बना देता है। गूगल ने गूगल एप्स नामक सीरीज में बहुत सारी वेब आधरित सेवाएं शुरू की थीं। इनमें जीमेल, गूगल साइट्स (वेबसाइट बनाने की सुविधा, गूगल कैलेंडर, गूगल डाक्स, गूगल मैप्स, पिकासा वेब एलबम, गूगल फाइनेंस, गूगल रीडर और स्केचअप जैसे टूल और सेवाएं भी थीं। कंप्यूटर पर सामान्य इंटरनेट यूजर का कामकाज इंटरनेट सर्फिंग, ईमेल देखने-भेजने और ऑफिस सॉफ्टवेयर तक सीमित है तो क्रोम ओएस बिना डेस्कटाप आपरेटिंग सिस्टम के ये काम करने में सक्षम हैं।

कुछ कमियां भी हैं

इस नेटबुक का इस्तेमाल आप तभी कर पाएंगे, जब वह इंटरनेट से कनेक्टेड हो। यानी
चैबीसों घंटे कनेक्टिविटी की दरकार है।इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अगर आप गूगल सेवाओं का उपयोग नहीं करते तो क्रोम ओएस शायद आपके लिए काम नहीं करेगा। आपकी जरूरतें वर्ड प्रोसेसिंग, ईमेल और ऑफिस डाक्यूमेंट्स तक सीमित हैं या फिर आप किसी खास क्षेत्र और दायरे में काम कर रहे हैं, जैसे- स्कूलों, एनजीओ, सीमित कामकाज वाले ऑफिस आदि में तो क्रोम ओएस आपके लिए ठीक हो सकता है, लेकिन इनसे थोड़े भी आगे बढ़ना है, तो क्रोम के भरोसे नहीं रह सकते। अगर आपको दूसरी कंपनियों के बड़े सॉफ्टवेयर, जैसे-फोटोशाप, इलस्टेटर, क्वार्क एक्सेस, आटोकैड, विजुअल स्टूडियो, कोरल ड्रा, एडोब प्रीमियर, साउंड फोर्ज, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस आदि चाहिए तो बिना डेस्कटाप आपरेटिंग सिस्टम के वह संभव नहीं होगा। कंप्यूटर पर विशेष किस्म के हार्डवेयर इन्स्टाल और इस्तेमाल करना भी परेशानी का सबब बना रहेगा। इसके अलावा, क्रोम डिवाइस की इंटरनल मैमोरी भी काफी कम होती है। हालांकि सभी क्रोमबुक सौ जीबी फ्री क्लाउड स्टोरेज के साथ आते हैं।

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