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प्रोजेक्ट लून




दुनिया बड़ी है, साधन सीमित और इच्छाएं अनंत। ऐसे में राष्ट्र और समाज के विकास के लिए आवश्यक हो जाता है कि उन सीमित साधनो का प्रयोग उचित तरीके से किया जा सके। साथ ही विकास ऐसा हो इसका फायदा हर एक व्यक्ति को मिल सके।

सीमित साधनो के विकास के लिए ऐसी कोशिशें हर रोज देखने को मिलती हैं। परंतु जैसा कि हमने पहले ही कहा कि दुनिया बहुत बड़ी है। ऐसे में बेहतर कोशिशों के बावजूद अक्सर विश्व का कोई कोना अछूता रह जाता है।

अब इंटरनेट को ही लीजिए, आज सूचना और संचार के महत्वपूर्ण साधनों की बात आती है तो इंटरनेट का नाम सबसे पहले आता है।


इसने दुनिया बदल दी, अब कोई दूर नहीं। न्यूज, वीडियो, सूचना और मनोरंजन सहित सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध् हैं। परंतु भारत के ग्रामीण इलाकों में अब तक इंटरनेट सेवा उपलब्ध् नहीं हो पाई है।

भारत ही नहीं, विश्व के कई देश हैं जो इंटरनेट सेवा अब तक पूरी तरह बहाल करने में सफल नहीं हो पाए हैं। परंतु जिस तरह गूगल ने कोशिश की है उसे देखकर कहा जा सकता है कि हां अब इंटरनेट का लाभ हर किसी को मिलेगा। गूगल ने गांव और दूर दराज के इलाकों में इंटरनेट सेवा बहाल करने के लिए प्रोजेक्ट लून की शुरुआत की है।

हालांकि फिलहाल यह प्रायोगिक तौर पर है लेकिन जल्द ही इस सेवा के अस्तित्व में आने की उम्मीद है।

क्या है प्रोजेक्ट लून

इंटरनेट के बारे में कहा जाता है कि इसने पूरे विश्व को समेट कर रख दिया है। परंतु इंटरनेट सेवा की सच्चाई यह है कि अब तक सिर्फ शहरों तक ही अपनी पहुँच बना पाई है।

विश्व की दो-तिहाई आबादी अब भी इंटरनेट सेवा से महरूम है। ऐसे में दूर दराज के इलाके, जहां इंटरनेट सेवा बहाल करना कड़ी चुनौती है, प्रोजेक्ट लून के माध्यम से जोड़े जाएंगे।

प्रोजेक्ट लून गूगल द्वारा निर्मित और विकसित की गई तकनीक है जिसके तहत बड़े-बड़े गुब्बारों के माध्यम से सुदूरवर्ती इलाके में इंटरनेट सेवा मुहैया कराने की योजना है। इसके साथ ही आपदा के समय भी यह सेवा कारगर साबित होगी।

कंपनी ने इस प्रोजेक्ट के लिए तैयारी तो बहुत पहले शुरू कर दी थी लेकिन इस वर्ष जून 2013 से न्यूजीलैंड में इसे प्रायोगिक तौर पर लांच किया गया। इसके तहत 30 बलून को हवा में भेजा गया और लगभग 50 लोगों को लून नेटवर्क के माध्यम से इंटरनेट सेवा से जोड़ा गया। इसके लिए विशेष तरह के एंटीना का प्रयोग किया गया था।

इस प्रयोग से उत्साहित गूगल ने इसे बड़े पैमाने पर लांच करने की घोषणा की है। कंपनी 40वें समानांतर दक्षिणी क्षेत्र में 300 नए बलून स्थापित करने की तैयारी कर रही है। इसके माध्यम से न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, चिलि और अर्जेंटीना जैसे देश में इंटरनेट सेवा प्रदान की जा सकेगी।

क्यों खास है लून

भारत सहित विश्व भर में इंटरनेट सेवा फिलहाल दो तरीके से दी जा रही है। एक तो केबल के द्वारा, जहां केबल टेलीफोन एक्सचेंज तक और टेलीफोन एक्सचेंज से सबके घरों तक। इस स्थिति में जमीन के नीचे केबल बिछाई जाती है जो बहुत की खर्चीला तरीका है। वहीं इसमें हर घर तक केबल ले जाना भी संभव नहीं है।
दूसरा तरीका है मोबाइल नेटर्वक के माध्यम से। पिछले कुछ सालों में विश्व में इस सेवा को बड़े जोर-शोर से प्रचलित किया जा रहा है लेकिन इसकी कुछ सीमाएं हैं। इसके माध्यम से इंटरनेट सेवा मोबाइल और टैबलेट तक ही सीमित है।

डेस्कटॉप और लैपटॉप पर इंटरनेट मोडम के माध्यम से ली जा सकती है। परंतु जब बड़े पैमाने पर इंटरनेट सेवा की बात आती है जैसे किसी ऑफिस या कंपनी जहां एक साथ बीस, पच्चीस, पचास और सौ से भी ज्यादा कंप्यूटर लगे हों तो मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से ये सेवा मुहैया नहीं कराई जा सकती। वहीं मोबाइल नेटवर्क के लिए लगाए जाने वाले टावर को भी बिजली की आवश्यकता होती है।

दूर-दराज के इलाकों में बिजली की समस्या है और वहां डीजल से टावर को चलाया जाता है। परंतु प्रोजेक्ट लून इस तरह की किसी भी समस्या से अछूता है। बलून के लिए न तो बिजली की आवश्यकता है और न ही केबल की। यह वायरलेस माध्यम से इंटरनेट सेवा मुहैया कराने में सक्षम है।

कैसे करता है कार्य

प्रोजेक्ट लून से इंटरनेट सेवा प्रदान करने की तकनीक बेहद ही अनोखी है। इसमें तकनीकी बलून को हवा में लटकाया जाता है। बलून पॉलीथिन प्लास्टिक शीट्स से बना होता है इसकी चैड़ाई 15 मीटर होती है जबकि लंबाई 12 मीटर निर्धारित की गई है।

प्रोजेक्ट लून में उपयोग किए जाने वाले बलून का निर्माण ऐसे मैटेरियल से किया जाता है कि यह अत्यधिक दबाव या बाध्यता झेलने में सक्षम हो। इसी वजह से यह साधारण बलून की अपेक्षा काफी दिन तक चलता है।

बलून में हाईप्रेशर गैस भरी होती है जो इसे काफी ऊपर तक ले जाती है। एक बार जब बलून हवा में अपनी स्थिति निश्चित कर लेता है उसके अंदर की गैस को निष्काशित कर दिया जाता है। बलून को हवा में उस स्थिति तक पहुंचाया जाता है जहां से हवा का दबाव कम हो जाता है और वह लटका रह सके।

साधारणतः इसे ऐसे भी बताया जा सकता है कि जितनी ऊचांई पर हवाई जहाज उड़ान भरता है उससे दोगुनी ऊचांई पर इसे स्थापित किया जाता है। इस कारण मौसम और बाहरी नुकसान से यह अछूता हो जाता है।
इस बलून में इंटरनेट ट्रांसमीटर के अलावा सोलर प्लेट और बैटरी होती है जो इसे बिजली प्रदान करते हैं।

बलून के ठीक नीचे सोलर प्लेट दी जाती है और उसके नीचे बास्केट लटका होता है। बास्केट में बैटरी होती है, साथ ही इंटरनेट ट्रांसमीटर और सर्किट बोर्ड भी होता है जिसके माध्यम से सिस्टम को कंट्रोल किया जा सके।
दिन में तो सोलर चार्जर से सिस्टम को बिजली मिल जाती है और सोलर बैटरी को चार्ज भी करता रहता है, जिससे कि रात में जब धूप न हो तो बैटरी का उपयोग किया जा सके। इसके अलावा इंटरनेट एंटीना (रेडियो एंटीना) होता है जो कम्युनिकेशन करता है।

इसके तहत हवा में एक साथ ढेर सारे बलून तैरते हैं। बलून में लगा एंटीना न सिर्फ धरती से सिग्नल प्राप्त करता है बल्कि एक दूसरे बलून को भी सिग्नल भेजता है। इसके साथ ही इंटरनेट सिग्नल भी ट्रांसमीट करता रहता है। धरती पर सिग्नल प्राप्त करने के लिए एक विशेष प्रकार के एंटीने की जरूरत होती है। जिसे घर या भवन पर लगा कर आप इंटरनेट सेवा का लाभ ले सकते हैं।

तकनीकी पक्ष

लून सेवा के तहत फिलहाल एक बलून 40 किलोमीटर के क्षेत्रा तक इंटरनेट सिग्नल प्रदान कर सकता है। वहीं एक बलून से दूसरे बलून की दूरी भी अधिकतम 40 किलोमीटर ही होती है। जहां तक इंटरनेट स्पीड की बात है तो लहाल यह 3जी डाटा प्रदान करने में सक्षम है। जैसा कि मालूम है किसी भी इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सिग्नल को एक विशेष स्पेक्ट्रम पर ट्रांसमीट या रिसीव किया जा सकता है। लून सेवा 2.4 गीगाहर्ट्ज और 5.8 गीगाहर्ट्ज बैंड पर कार्य करती है।

थोड़ी परेशानी

प्रोजेक्ट लून सेवा तो अच्छी है। परंतु फिलहाल जानकारों की राय कंपनी से कुछ अलग है। कुछ जानकारों का कहना है कि इसमें बिजली बहुत बड़ी समस्या हो सकती है कि क्योंकि कई स्थान है जहां धूप बहुत कम समय के लिए होती है। ऐसे में बैटरी चार्ज नहीं हो सकती और सेवा बंद हो जाएगी। इस बारे में कंपनी ने दावा किया है कि सेवा का परीक्षण उस स्थिति में भी किया गया है जहां दिन में धूप महज साढ़े पांच घंटे तक थी और 18.5 घंटे अंधेरा था। परंतु इस दौरान भी बैटरी बेहतर तरीके से कार्य कर रही थी। बैटरी के बाद दूसरी समस्या खुद बलून से है।

बलून में हीलियम गैस भरी हुई है और ऐसा मानना है कि कंपनी जिस ऊचांई तक का दावा कर रही है वहां तक यह जाने में सक्षम तो है लेकिन गैस ज्यादा दिनों तक बलून में रह नहीं सकती। वह निकल जाएगी और उस स्थिति में बलून जमीन की सतह पर फिर से वापस आ जाएगा लेकिन कंपनी ने इस दावे का भी खंडन किया है और कहा है कि बलून उच्च क्वालिटी के प्लास्टिक मैटेरिल से बना है जो गैस को कई दिनों तक संजोकर रखने में सक्षम है।

परंतु सबसे बड़ी समस्या का जिक्र करें तो वह है हवा का बहाव। हवा के बहाव को देखते हुए कई जानकारों ने तो यहां तक दावा कर दिया कि प्रोजेक्ट लून पूरी तरह बकवास है।

इसमें आप बलून के माध्यम से इंटरनेट सेवा तो प्रदान कर देंगे लेकिन यह कुछ दिनों में साउथ पोल या नॉर्थ पोल (उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव) में जाकर जमा हो जाएंगे। यहां तक कि माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन बिल गेट्स ने अपने एक साक्षात्कार में इसकी भरपूर बुराई की।

परंतु इन सब आलोचनाओं से दूर गूगल अपने प्रोजेक्ट लून को लेकर काफी उत्साहित है और आने वाले दिनों में इसके विकास को लेकर कई तरह के दावे कर रहा है। कंपनी का मानना है कि इंटरनेट के क्षेत्र में यह एक नई क्रांति लाएगी। इसके माध्यम से न सिर्फ दूर दराज इलाकों में इंटरनेट सेवा बहाल की जा सकेगी बल्कि आपदा स्थिति में भी यह बेहद ही कारगर सिद्ध होगी।

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