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बढ़ता आॅनलाइन- रिटेलरों के लिए खतरे की घंटी

आज स्नैपडील पर 25 मिलियन से भी ज्यादा उपभोक्ता हैं जबकि फ्लिपकार्ट पर एक दिन में लगभग दो करोड़ से ज्यादा के हिट्स। ईकाॅमर्स साइट्स काफी लोकप्रियता बटोर रहे हैं और उपभोक्ता भी इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। परंतु ईकाॅमर्स की इस बढ़ती चकाचौंध में फिजिकल स्टोर की चमक धूमिल हो रही है। तेजी से पांव पसारती ईकाॅमर्स साइट्स की वजह से बदलते बाजार और छोटे रिटेलरों की स्थिति को बयां कर रहे हैं
मुकेश कुमार सिंह।






इस साल की शुरुआत में ही कुछ ऐसी खबरें आईं जिनसे यह साफ हो गया था कि बाजार एक बार फिर से बदलने को तैयार है। 9 जनवरी 2014 ओप्लस ने भारतीय बाजार में अपना पहला टैबलेट लाॅन्च किया। यह खबर कोई बड़ी नहीं थी। क्योंकि आए दिन भारत में एंडराॅयड टैबलेट लाॅन्च होते हैं। परंतु बड़ी खबर यह थी यह टैबलेट सिर्फ आॅनलाइन स्टोर स्नैपडील पर ही बिक्री के लिए उपलब्ध था।

पहली बार ऐसा देखा गया था कि किसी प्रोडक्ट को स्टोर पर लाॅन्च न कर सीध आॅनलाइन से उपलब्ध कराया जा रहा हो। उस वक्त हर किसी को थोड़ा अजीब लग रहा था कि सिर्फ आॅनलाइन स्टोर पर उपलब्ध करा कर यह बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। स्नैपडील से यह टैबलेट कितना बिका और कैसा रिस्पाॅन्स रहा इस बारे में कहना थोड़ा मुश्किल है। परंतु एक माह बाद जो घटना घटी उसने आॅन लाइन स्टोर को जरूर सुर्खियों में ला दिया। 

5 फरवरी 2014 मोटोरोला ने फ्लिपकार्ट के साथ मिलकर मोटो जी को भारत में लाॅन्च किया। यह फोन भी भारत में सिर्फ आॅनलाइन स्टोर फ्लिपकार्ट पर ही बिक्री के लिए उपलब्ध था। फोन बेहद लोकप्रिय रहा। खबर तो यहां तक आई कि एक माह में मोटो जी की बिक्री एक लाख से ज्यादा हुई। किसी आॅनलाइन स्टोर पर पहली बार इस तरह का हुजूम देखने को मिला।

इसके कुछ माह बाद ही फ्लिपकार्ट ने फिर से मोटो ई को पेश किया और इस बार भी वही कहानी दोहराई गई। आलम यह हुआ कि महज छह माह में मोटोरोला अपने तीन स्मार्टफोन के दम पर भारतीय बाजार में स्मार्टफोन क्षेत्र में नोकिया को पीछे छोड़ने में सफल रहा। इस सफलता के बाद कई और ब्रांडों ने सिर्फ आॅनलाइन का रुख किया जिसमें असूस जेनफोन, अल्काटेल वनटच आयडल एक्स+ और शियाओमी इत्यादि प्रमुख हैं।

वहीं ओप्लस ने फिर से अपना फोन सिर्फ आॅनलाइन स्टोर स्नैपडील पर लाॅन्च किया। हाल में ओबी मोबाइल ने भारतीय बाजार में दस्तक दी है। कंपनी ने भारत में आॅनलाइन स्टोर स्नैपडील के साथ मिलकर यह शुरूआत की है।

इस साल में अब तक मोबाइल से ज्यादा आॅनलाइन स्टोर चर्चा में हैं। फ्लिपकार्ट नई ऊँचाइयों को छू रहा है तो स्नैपडील के लिए निवेशक हाथ में पैसे लिए खड़े हैं। अमेजन और ईबे जैसे प्लेयर भी बेहतर कर रहे हैं। भारतीय बाजार में आखिर ऐसा क्या बदलाव आया जो मोबाइल निर्माता आॅनलाइन की ओर रुख करने लगे?



डिमांड आॅनलाइन
जहां उपभोक्ता होंगे वहां-वहां निर्माता जाएंगे। और उपभोक्ता आज घर पर कम आॅन लाइन ज्यादा रहते हैं। आज हर कोई इंटरनेट से जुड़ा है। जहां कंप्यूटर नहीं है वहां लोग मोबाइल पर आॅनलाइन हैं। इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता में आज मुहल्ला, शहर, राज्य या देश कुछ भी दूर नहीं है। 

और इसका फायदा आॅनलाइन पोर्टल या ईकाॅमर्स साइट को मिला। निर्माताओं का आॅनलाइन की ओर रुख करने का सबसे बड़ा कारण यही है। आज स्नैपडील पर 25 मिलियन से भी ज्यादा उपभोक्ता हैं जबकि फ्लिपकार्ट पर एक दिन में लगभग दो करोड़ से ज्यादा के हिट्स हैं। यही वजह है कि कंपनियां फिजिकल स्टोर पर जाने के बजाय सीधे आॅन लाइन का रुख कर रही हैं।

इस बारे में टोनी नवीन सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, स्नैपडील डाॅट काॅम कहते हैं, ‘हमारे साथ जुड़ने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि एक साथ 25 मिलियन से भी ज्यादा उपभोक्ता तक आप पहुंच सकते हैं। जो कि बहुत बड़ी बात है।’ वहीं माइकल अडनानी, वीपी- रिटेल एंड हेड-ब्रांड अलाइंसेज, फ्लिपकार्ट, कहते हैं, ‘हमारे साथ एक्सक्लूसिव पार्टनरशिप करने का फायदा ब्रांड को यह होता है कि वह न सिर्फ एक साथ बहुत बड़े उपभोक्ता वर्ग तक पहुंच जाते हैं बल्कि एक ही प्लेटफाॅर्म के नीचे वे अपनी सभी सेवाएं भी मुहैया कराते हैं। आज हमारे साथ एक्सक्लूसिव पार्टनरशिप में सिर्फ मोबाइल निर्माता ही नहीं बल्कि अन्य इलेक्ट्राॅनिक्स और नाॅन इलेक्ट्राॅनिक्स सामान निर्माता भी जुड़े हैं।’

हालांकि कई लोगों को आज भी यह शिकायत है कि स्टोर पर आप फोन देख सकते हैं और परख सकते हैं जबकि आॅनलाइन आपको सिर्फ फोटो और स्पेसिफिकेशन के आधार पर लेना होता है। इस पर माइकल अडनानी कहते हैं, ‘मोबाइल या डेस्कटाॅप के माध्यम से आॅन लाइन शाॅपिंग फिलहाल अपने शुरुआती स्तर में है। 

भारतीय इंटरनेट उपभोक्ताओं के लिए यह बाजार अभी तैयार हो रहा है। ईकाॅमर्स साइट को चाहिए कि वह बेहतर एक्सपीरियंस के लिए हर छोटी-बड़ी चीजों को बेहतर तरीके से ध्यान दे, आॅर्डर लेने से डिलीवरी तक। जिससे कि उपभोक्ता किसी दूसरे माध्यम से खरीदारी के बारे में सोच भी न सके। जहां तक फ्लिपकार्ट की बात है तो हमारी कोशिश यही होती है कि तकनीकी के माध्यम से शाॅपिंग ज्यादा से ज्यादा आसान बना सकें।’
कीमत का कमाल मोबाइल क्षेत्र में कीमत शुरू से ही प्रभावी रही है। 



हमारे साथ एक्सक्लूसिव पार्टनरशिप करने का फायदा ब्रांड को यह होता है कि वह न सिर्फ एक साथ बहुत बड़े उपभोक्ता वर्ग तक पहुंच जाते हैं बल्कि एक ही प्लेटफाॅर्म के नीचे वे अपनी सभी सेवाएं भी मुहैया कराते हैं। आज हमारे साथ एक्सक्लूसिव पार्टनरशिप में सिर्फ मोबाइल निर्माता ही नहीं बल्कि अन्य इलेक्ट्राॅनिक्स और नाॅन इलेक्ट्राॅनिक्स सामान निर्माता भी जुड़े हैं।
-माइकल अडनानी,
वीपी, रिटेल एंड हेड-ब्रांड अलाइंसेज, फ्लिपकार्ट



फोन की कीमत में सौ-पचास का अंतर भी उपभोक्ता को खींचने के लिए काफी रहा है। ऐसे में आॅनलाइन स्टोर पर जब भारतीय उपभोक्ता ने कदम रखा तो सबसे पहले उन्होंने कीमत को अपनी बाजार नीति का माध्यम बनाया। मोबाइल निर्माताओं द्वारा भी आॅनलाइन की ओर रुख करने का सबसे बड़ा कारण कीमत ही है। फिजिकल रिटेल स्टोर पर फोन विक्रय के लिए उपलब्ध होने से पहले लंबी-चैड़ी प्रक्रिया से गुजरता है। ऐसे में फोन की वास्तविक कीमत काफी बढ़ जाती है। 

जबकि आॅनलाइन स्टोर पर फोन कंपनी से सिर्फ ईकाॅमर्स साइट तक जाते हैं और ईकाॅमर्स साइट से उत्पाद सीधे उपभोक्ता तक पहुंचता है। ऐसे में फोन की कीमत काफी कम हो जाती है। शियाओमी, मोटो जी या असूस जेनफोन पर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस स्पेसिफिकेशन के फोन जो दूसरे स्टोर्स के पास उपलब्ध हैं वे इनकी बनिस्पत महंगे हैं। 

इस बारे में सीईओ ओबी मोबाइल, अजय शर्मा कहते हैं, ‘आज हर कोई यही जानना चाहता है कि कंपनियां आॅन लाइन की ओर रुख क्यों कर रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है लागत में कमी और भारतीय बाजार में उनकी बढ़ती उपलब्ध्ता है। हाल में हमने भी ओबी आॅक्टोपस एस520 माॅडल को भारत में लाॅन्च किया जो एक्सक्लूसिव रूप से स्नैपडील पर उपलब्ध है।’

वहीं समीर कुमार, डायरेक्टर कैटेगरी मैनेजमेंट, अमेजन इंडिया कहते हैं,  ‘ईकाॅमर्स साइट पर उपभोक्ताओं को एक ही जगह पर कई सारे प्रोडक्ट देखने को मिल जाते हैं। वहीं प्रोडक्ट की कीमत भी कम होती है। कम समय में और सही डिलीवरी की वजह से उपभोक्ता आॅनलाइन की ओर रुख कर रहे हैं। आज कार्बन, लावा, जोलो, ओपो और सैमसंग सहित कई निर्माता हमारे ब्रांड पार्टनर हैं।’ निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि कम कीमत, बेहतर डिलीवरी, ज्यादा उपभोक्ता, कम खर्चीला और कम रिस्क् होने की वजह से आज कंपनियां आॅनलाइन की ओर रुख कर रही हैं। 

विश्वास से लबरेज
ईकाॅमर्स की शुरुआत हुई तो लोगों ने कहा कि यहां से कौन फोन खरीदेगा लेकिन आज आॅनलाइन बाजार हर रोज नई उंचाइयों को छूने को आतुर है। एक बातचीत के दौरान फ्लिपकार्ट के सीईओ और फाउंडर सचिन बसंल ने कहा था कि जिस तरह मोटोरोला के प्रति लोगों का उत्साह देखने को मिला उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि मोटोरोला कुछ ही दिनों में भारत के प्रमुख पांच स्मार्टफोन निर्माता में से एक होगा।’

इस कथन के कुछ ही दिनों बाद यह खबर आई कि स्मार्टफोन विक्रय के मामले में मोटोरोला ने भारत में नोकिया को पीछे छोड़ दिया है और प्रमुख पांच स्मार्टफोन निर्माताओं में शामिल हो गया। खबर के साथ छपी रिपोर्ट इसे पूरी तरह सही साबित कर रही थी।

कल तक किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारत जैसे देश में आॅनलाइन से लोग फोन खरीदेंगे। वहीं आज सिर्फ आॅनलाइन के बल पर मोटोरोला एक मिलियन से भी ज्यादा फोन बेचने में सफल रहा। इससे पता चलता है कि ईकाॅमर्स के विकास को लेकर सचिन कितने आश्वस्त हैं। वहीं हाल में आई एक और खबर ने भी लोगों को ईकाॅमर्स की ओर ध्यान खींचने पर मजबूर किया है।

खबर आई है कि रतन टाटा ईकाॅमर्स साइट स्नैपडील में निवेश कर सकते हैं। जबकि टाटा का फिजिकल स्टोर क्रोमा पहले से उपलब्ध है। हालांकि इस खबर में कितनी सच्चाई है फिलहाल इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन आॅनलाइन के इस बाजार के साथ रतन टाटा का नाम जुड़ने के साथ ही इसके भविष्य के बारे में आप खुद ही कल्पना कर सकते हैं। 

फिर आए संकट के बादल
ईकाॅमर्स साइट बेहतर कर रही हैं और इसमें काफी तेजी से विकास देखा जा रहा है। निवेशक तैयार हैं और उपभोक्ता को भी घर बैठे अच्छी डील मिल रही है। ईकाॅमर्स साइट को लेकर आज हर कोई बेहतर भविष्य की कामना तो कर रहा है लेकिन उनकी बढ़ती उपलब्धता से एक बड़े वर्ग पर खत्म होने का खतरा मंडराने लगा है। यह वर्ग कोई और नहीं बल्कि वे छोटे रिटेलर्स हैं जो गली-मुहल्ले और शहरों में मोबाइल व्यवसाय से जुड़े हैं। वर्ष 2007-08 में भी बढ़ते माॅडर्न ट्रेड के बीच इनके खत्म होने का खतरा मंडरा रहा था। अब एक बार फिर से ईकाॅमर्स की बढ़ती उपलब्धता इनके लिए मुसीबत का सबब बन रही है।


भारत में मोबाइल सेवा की शुरुआत हुई तो पहले सिर्फ फिजिकल स्टोर उपलब्ध थे। बाद में बड़े रिटेल स्टोर्स ने कदम रखा। बड़े निवेश और बेहतर साज सज्जा के साथ खोले गए इन स्टोर्स ने कीमत को अपनी बाजार नीति का माध्यम बनाया और कम कीमत पर मोबाइल मुहैया कराने शुरू कर दिए। हालांकि कीमत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं होता था लेकिन भारतीय बाजार में 100-50 रुपए का अंतर भी उपभोक्ता को प्रभावित करता है।

कुछ ही समय में ये रिटेल चेन लोकप्रिय भी होने लगीं और कई बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आ गईं। उस वक्त लगभग हर शहर या क्षेत्र से कुछ छोटे मोबाइल रिटेल स्टोर के बंद होने की खबरें र्भी आइं। परंतु समय ने करवट ली और बाजार में ना जाने ऐसा क्या बदलाव आया कि अचानक बड़ी रिटेल चेन का बढ़ना रुक गया। कुछ ही समय में स्थिति सामान्य हो गई और सब बेहतर तरीके से पफलने-फूलने लगे लेकिन ईकाॅमर्स की दस्तक इस बार फिर से छोटे रिटेलरों के लिए भारी संकट माना जा रहा है।

आॅनलाइन बनाम आॅफलाइन
वैसे तो रिटेल स्टोर का इतिहास बहुत पुराना है। पौराणिक कहानियों में भी इसका जिक्र सुनने को मिलता है लेकिन मोबाइल रिटेल काफी बाद में आया। भारत में मोबाइल सेवा का इतिहास लगभग 20 साल का है और इतने ही सालों से मोबाइल रिटेल पर बेचा जा रहा है। जबकि ईकाॅमर्स हाल में जन्मा है। यह तो अभी पूरी तरह जवान भी नहीं हुआ है। 

परंतु चंद सालों में ही ईकाॅमर्स साइट फिजिकल रिटेल स्टोर को डराने लगी है। जैसा कि हम पहले भी बात कर चुके हैं कि ईकाॅमर्स साइट ने सबसे पहले कीमत को अपनी रणनीति का माध्यम बनाया। लंबी-चैड़ी डिस्ट्रीब्यूशन प्रक्रिया न होने की वजह से यहां कीमत में काफी अंतर आ जाता है। इसकी बेहतर सर्विस और एक्सक्लूसिव लाॅन्च के माध्यम से भी ये उपभोक्ता को खींचने में सफल हो रही हैं। रही बात मोबाइल की खरीदारी के अनुभव की तो आप किसी साधारण स्टोर पर जाते हैं तो एक बार में 50, 60 या फिर 100 माॅडल उपलब्ध होते हैं। 

ईकाॅमर्स फिलहाल अपने शुरुआती दौर में है और फिलहाल यह काफी तेजी से विकास कर रहा है परंतु आगे चलकर यह स्थिर हो जाएगा। हमारे यहां इंटरनेट की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। परंतु यूरोप और यूएस में जहां इंटरनेट काफी तेज है वहां भी कुल खरीदारी में ईकाॅमर्स का योगदान 10 फीसदी या इससे कुछ ज्यादा है। ऐसे में भारत में भी आप इससे बहुत अलग स्थिति की कामना नहीं कर सकते।
-अजीत जोशी, 
इंफिनिटी रिटेल लिमिटेड,क्रोमा (टाटा इंटरप्राइजेज)

किसी बहुत बड़े स्टोर पर फोन माॅडल की संख्या 200 हो सकती है लेकिन आॅन लाइन स्टोर पर असीमित है। आप एक बार में ज्यादा से ज्यादा माॅडल के बारे में जानकारी ले सकते हैं। इन माॅडल के बारे में जानकारी लेने के लिए आपको कहीं जाने की जरूरत भी नहीं है बल्कि घर बैठे अपने फोन, टैबलेट या कंप्यूटर पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 

फिजिकल स्टोर पर जहां किसी प्रमोटर से आपको बार-बार फोन माॅडल, उसके स्पेसिफिकेशन और कीमत के बारे में पता करना होता है, वहीं ईकाॅमर्स साइट में आप अपनी मन मर्जी से किसी भी फोन का स्पेसिफिकेशन और कीमत की जानकारी ले सकते हैं। यहां आप पूरी तरह स्वतंत्र हैं। ज्यादा से ज्यादा माॅडल और उपभोक्ता का स्वतंत्र निर्णय इत्यादि ईकाॅमर्स के लिए आज बेहतर वातावरण तैयार कर रहा है। 

फिजिकल स्टोर पर जहां आप सिर्फ दुकानदार या प्रमोटर्स के विश्वास पर फोन की खरीदारी करते हैं। वहीं ईकाॅमर्स साइट पर आप उपभोक्ता रेटिंग, रिव्यू और दो, तीन या चार फोन का तुलनात्मक अध्ययन भी कर सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक ईकाॅमर्स साइट पर भुगतान सिर्फ कार्ड द्वारा किया जाता था और इस मामले में फिजिकल स्टोर ईकाॅमर्स से कहीं आगे निकल जाते थे। परंतु आज कैश आॅन डिलीवरी का भी विकल्प ईकाॅमर्स साइट द्वारा दिया जा रहा है। जहां उपभोक्ता किसी सामान की खरीदारी कर सामान की डिलीवरी घर पर होने के बाद नकद भुकतान कर सकता है। इन खासियतों ने ईकाॅमर्स साइट को एक नई ताकत प्रदान की है।


जान अभी बाकी है
माना कि ईकाॅमर्स तेजी से पांव पसार रहा है लेकिन ऐसा नहीं कि फिजिकल स्टोर पूरी तरह पंगु हो गए हैं और उन्होंने ईकाॅमर्स के आगे हथियार डाल दिए हैं। आॅन लाइन स्टोर की सबसे बड़ी ताकत है इंटरनेट और यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। ईकाॅमर्स साइट से यदि आप खरीदारी करते हैं तो इंटरनेट जितना तेज होगा उतना बेहतर अनुभव आप पा सकते हैं। 

जबकि भारत में फिलहाल इंटरनेट हर जगह है ही नहीं और मोबाइल के माध्यम से छोटे शहरों और गांवों में यदि इंटरनेट मुहैया भी कराया जा रहा है तो इतना तेज नहीं है कि आप खरीदारी कर सकें। कैश आॅन डिलीवरी और ईएमआई का विकल्प तो ईकाॅमर्स साइट पर है लेकिन फिलहाल पूरे भारत में इनकी सेवाएं नहीं हैं। यह सिर्फ शहरों तक ही सीमित है। गांव-गांव में मोबाइल सहित किसी भी वस्तु की डिलीवरी करने में आज भी आॅन लाइन स्टोर अक्षम हैं। जबकि मोबाइल रिटेल स्टोर आज हर गांव या उसके आस-पास के इलाके में उपलब्ध हैं। 



आज हर कोई यही जानना चाहता है कि कंपनियां आॅन लाइन की ओर रुख क्यों कर रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है लागत में कमी और भारतीय बाजार में उनकी बढ़ती उपलब्धता है। हाल में हमने भी ओबी आॅक्टोपस एस520 माॅडल को भारत में लाॅन्च किया जो एक्सक्लूसिव रूप से स्नैपडील पर उपलब्ध है।
-अजय शर्मा
सीईओ ओबी मोबाइल

गलत डिलीवरी और सामान में अंतर भी आॅन लाइन स्टोर की प्रमुख समस्याएं हैं। आपने पहले पेमेंट कर रखा हो या कैश आॅन डिलीवरी पर सामान लिया हो। आप तब तक सामान को देख नहीं सकते जब तक कि आपने रिसिविंग नहीं दी हो। 

पेमेंट होने और रिसिविंग देने के बाद सामान में किसी भी प्रकार के अंतर या गलत सामान मिलने पर आप त्वरित वापस नहीं कर सकते बल्कि आपको ईकाॅमर्स साइट के कस्टमर केयर या उनकी साइट पर अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी। गलत और नकली सामान से संबंधित शिकायतें आए दिन मिलती रहती हैं। जबकि फिजिकल स्टोर पर जब आप मोबाइल लेने जाते हैं तो आपको पसंद कराने के बाद आॅन कर दिखाया जाता है और आपका सिम उसमें लगाकर चलती हालत में दिया जाता है। 

इस तरह का अनुभव आॅनलाइन में नहीं मिलता है। आॅनलाइन खरीदारी करते हैं तो आप सिर्फ फोटो और स्पेसिफिकेशन देखकर फोन लेते हैं। जबकि स्टोर पर आप फोन की खरीदारी से पहले मोबाइल का अनुभव कर सकते हैं। इस तरह का अहसास ईकाॅमर्स साइट पर नहीं  मिलेगा। 

इस बारे में फाउंडर एंड सीईओ, यूनिवर्सल, सतीश बाबू कहते हैं, ‘आॅनलाइन का बाजार बढ़ रहा है लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे फिजिकल स्टोर खत्म हो जाएंगे। हाल में एक सर्वेक्षण प्रकाशित किया गया जिसमें यह बताया गया है कि लोग स्पेसिफिकेशन और फोन की कीमत की जानकारी लेने के लिए ईकाॅमर्स साइट पर जाते हैं जबकि खरीदारी वे फिजिकल स्टोर से करते हैं। फिजिकल स्टोर पर आप खरीदारी से फोन का वास्तविक अहसास कर सकते हैं। यह अनुभव ईकाॅमर्स में नहीं मिलेगा।’


आगे क्या होगा
आॅनलाइन स्टोर के बढ़ने से फिजिकल स्टोर पर खतरा तो मंडरा रहा है लेकिन इन रिटेल स्टोर की खासियतों को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि फिलहाल ये खत्म होने वाले हैं। इस बारे में जोलो मोबाइल के बिजनेस हेड, सुनील रैना कहते हैं, ‘ईकाॅमर्स के बढ़ने से फिलहाल फिजिकल स्टोर को कोई खास खतरा नहीं है। मोबाइल खरीदारी के ये दोनों अलग माध्यम हैं और दोनों के खरीदार अलग हैं। कुछ को आॅनलाइन खरीदारी करनी पसंद है तो कुछ स्टोर पर जाकर जांच-परखकर खरीदारी करनी पसंद करते है।’


यह बात बहुत हद तक सही भी है। इंटरनेट होते हुए भी बहुत लोग स्टोर से ही मोबाइल खरीदना पसंद करते हैं। वहीं इंफिनिटी रिटेल लिमिटेड, क्रोमा (टाटा इंटरप्राइजेज) के सीईओ व एमडी अजीत जोशी कहते हैं, ‘ईकाॅमर्स फिलहाल अपने शुरुआती दौर में है और फिलहाल यह काफी तेजी से विकास कर रहा है परंतु आगे चलकर यह स्थिर हो जाएगा। हमारे यहां इंटरनेट की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। परंतु यूरोप और यूएस में जहां इंटरनेट काफी तेज है वहां भी कुल खरीदारी में ईकाॅमर्स का योगदान 10 फीसदी या इससे कुछ ज्यादा है। ऐसे में भारत में भी आप इससे बहुत अलग स्थिति की कामना नहीं कर सकते।’

इस बारे में अजय शर्मा कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि आॅन लाइन स्टोर की वजह से फिजिकल रिटेल आउटलेट को कोई खतरा है। वे एक-दूसरे के प्रतियोगी नहीं बल्कि एक चैनल में कार्य कर रहे हैं। ईकाॅमर्स साइट आज मार्केट प्लेस की तरह हो गए हैं। कई बार तो ऐसा देखने को मिलता है कि ईकाॅमर्स द्वारा बुक किए गए आॅर्डर को रिटेल आउटलेट द्वारा पूरा किया जा रहा है। कई मल्टी रिटेल चेन की अपनी ईकाॅमर्स साइट है और वे दोनों माध्यम से उपभोक्ताओं की जरूरतें को पूरी कर रहे हैं।’

ईकाॅमर्स साइट बेहतर कर रहे हैं और उपभोक्ता को इससे लाभ भी हो रहा है। परंतु छोटे रिटेलर्स पर यदि खत्म होने का खतरा मंडराता है तो स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती। क्योंकि बाजार का प्रतियोगी होना उपभोक्ता के लिए ज्यादा बेहतर है न कि किसी एक हाथ में नियंत्रण।






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